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आत्मा का दर्शन
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खण्ड-४
पडिनियत्तेहिं संघस्स अक्खातं। तेहिं अण्णोवि मुनियों ने लौटकर सारा वृत्त संघ को बताया। संघ ने संघाडओ विसज्जितो-जो संघस्स आणं दूसरा सिंघाड़ा भेज कहलवाया-जो संघ की आज्ञा का अतिक्कमति तस्स को डंडो? ते गता। कहितं। तो अतिक्रमण करता है, उसके लिए कौन-सा दंड है? अक्खाइ-उग्घाडेज्जइ। ते भणंति-मा उग्घाडेह। सिंघाड़ा गया और सारी बात कही। संघ की आज्ञा के पेसेह मेहावी सत्त पाडिपुच्छगाणि देमि
अतिक्रमण का अर्थ होता है-संघ से बहिष्कार। भद्रबाह ने कहा-ऐसा मत करो। कुछ मेधावी साधुओं को भेजो। मैं
प्रतिदिन सात वाचना दूंगा१. भिक्खायरियाए आगतो
१. भिक्षाचरी से आने के बाद २. कालवेलाए
२. स्वाध्याय के समय ३. सण्णाए आगतो
३. शौच से आने के बाद ४. वेयालियाए
४. विकाल बेला में ५. आवस्सए पडिपुच्छा तिण्णि।
५. आवश्यक के बाद प्रतिपृच्छा के लिए तीन ।' महापाणं किर जदा अतिगतो होति ताहे उप्पण्णे जब महाप्रयाण ध्यान सम्पन्न हो जाता है, उस कज्जे अंतोमहत्तेण चोइसवि पुव्वाणि अणुप्पे- व्यवस्था में प्रयोजन उत्पन्न होने पर अंतर्मुहूर्त में चौदह हेज्जंति। उक्कइओवइयाणि करेति।
पूर्वो की अनुप्रेक्षा की जा सकती है। उनका अनुलोमविलोम पद्धति अथवा पूर्वानुपूर्वी-पश्चानुपूर्वी से परिवर्तन .
किया जा सकता है। ताहे थूलभद्दसामिप्पमुक्खाणि पंच मेहावीणं संघ ने सिंघाड़े से यह संवाद पाकर स्थूलभद्र आदि । सताणि गयाणि। ते य पपढिमा। मासेण एक्केण ५०० मेधावी मुनियों को वहां भेजा। उन्होंने वाचना प्रारंभ दोहिं तिहिंति सव्वे ओसरिता। न तरंति की। प्रायः सभी मुनि एक, दो, तीन महीनों में लौट गए। पाडिपुच्छएणं पढितं। थूलभदसामी ठितो। थेवाव- उन्होंने कहा-हम प्रतिपच्छक के बिना पढ़ नहीं सकते। सेसे महापाणे पुच्छितो-न ह किलंमसि? न केवल स्थूलभद्रस्वामी वहां रहे। किलंमामि। खमाहि कंचि कालं। तो दिवसं सव्वं महाप्राण ध्यान की साधना थोड़ी शेष रही, तब वायणा होहिति। पुच्छति-किं पढितं? केत्तियं वा भद्रबाहु ने पूछा-तुम खिन्न तो नहीं हो रहे हो ? स्थूलभद्रअच्छति? आयरिया भणंति-अट्ठासीतिं सुत्ताणि। मैं खिन्न नहीं हो रहा हूं। भद्रबाहु-कुछ दिन प्रतीक्षा करो, सिद्धत्थकेण मंदरेण य उपमाणं। भणिओ य-एतो फिर मैं तुम्हें पूरे दिन वाचना दूंगा। स्थूलभद्र-मैंने कितना ऊणतरेणं कालेणं पढिहिसि। मा विसादं पढ़ा है, कितना शेष रहा है ? भद्रबाहु-तुम ८८ सूत्र पढ़ वच्चेज्जासि।
चुके हो। सरसों जितना पढे हो। मंदर जितना पढ़ना शेष है। किंतु विषाद मत करो। जितना समय लगा है, उससे
कम समय में तुम पढ़ पाओगे। समत्ते महापाणे किर पढियाणि णव पडिपण्णाणि। महाप्राण ध्यान सम्पन्न हो गया। स्थूलभद्र ने प्रतिपूर्ण दसमकं च दोहिं वत्थूहिं ऊणकं। एतंसि अन्तरे नौ पूर्व पढ़ लिए। वस्तुओं (विभागों) से न्यून दसवां पूर्व विहरन्ता आगता पाडलिपुत्तं। थूलभहस्स य ताओ भी पढ़ लिया। भद्रबाहु और स्थूलभद्र नेपाल से प्रस्थान भगिणीओ सत्तवि पव्वइतिकाओ भणंति- कर पाटलिपुत्र आ गए। स्थूलभद्र की सात बहिनें प्रव्रजित आयरिका! भाउकं वंदका वच्चामो। उज्जाणे किर हुई थीं। वे आचार्य भद्रबाहु और अपने भाई स्थूलभद्र को ठितेल्लका। आयरिए वंदित्ता पुच्छंति-कहिं वंदन करने गईं। आचार्य भद्रबाहु उद्यान में ठहरे हुए थे। जेठभाते? भणति-एताए देवकुलिकाए गुणति। उन्होंने वंदन कर पूछा-हमारा ज्येष्ठ भ्राता कहां है?