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________________ आत्मा का दर्शन ५१० खण्ड-४ जिनशासन में प्रव्रजित चक्रवर्ती और राजे ३७.किरियं च रोयए धीरे, अकिरियं परिवज्जए। दिट्ठीए दिठिसंपन्ने धम्म चर सदच्चरं।। धीर-पुरुष को क्रियावाद पर रुचि करनी चाहिए और अक्रियावाद को त्याग देना चाहिए। सम्यक् दृष्टि के द्वारा दृष्टि-सम्पन्न होकर तुम सुदुश्चर धर्म का आचरण करो। ३८.एयं पुण्णपयं सोच्चा, अत्थंधम्मोवसोहियं। भरहो वि भारहं वासं, चेच्चा कामाइ पव्वए। अर्थ और धर्म से उपशोभित इस पवित्र उपदेश को . सुनकर भरत चक्रवर्ती ने भारतवर्ष और काम-भोगों को . छोड़कर प्रव्रज्या ली। ३९.सगरो वि सागरन्तं भरहवासं नराहिवो। इस्सरियं केवलं हिच्चा दयाए परिनिव्वुडे॥ सगर चक्रवर्ती सागर पर्यन्त भारतवर्ष और पूर्ण . ऐश्वर्य को छोड़, संयम की आराधना कर मुक्त हुए। ४०.चइत्ता भारहं वासं चक्कवट्टी महिडिढओ। पव्वज्जमब्भुवगओ मघवं नाम महाजसो॥ ४१.सणंकुमारो-मणुस्सिन्दो चक्कवट्टी महिड्ढिओ। पुत्तं रज्जे ठवित्ताणं सो वि राया तवं चरे॥ महर्द्धिक और महान् यशस्वी मघवा चक्रवर्ती ने भारतवर्ष को छोड़कर प्रव्रज्या ली। महर्द्धिक राजा सनत्कुमार चक्रवर्ती ने पुत्र को राज्य पर स्थापित कर तपश्चरण किया। ४२.चइत्ता भारहं वासं चक्कवट्टी महिड्ढिओ। सन्ती सन्तिकरे लोए पत्तो गइमणुत्तरं॥ महर्द्धिक और.लोक में शांति करनेवाले शांतिनाथ ... चक्रवर्ती ने भारतवर्ष को छोड़कर अनुत्तर गति प्राप्त की। ४३.इक्खागरायवसभो कुन्थू नाम नराहिवो। विक्खायकित्ती धिइमं मोक्खं गओ अणत्तरं। इक्ष्वाकु कुल के राजाओं में श्रेष्ठ, विख्यात कीर्ति. वाले, धृतिमान भगवान कुन्थु नरेश्वर ने अनुत्तर मोक्ष प्राप्त किया। ४४.सागरंतं जहित्ताणं भरहं वासं नरीसरो। अरो य अरयं पत्तो पत्तो गइमणुत्तरं॥ सागर पर्यन्त भारतवर्ष को छोड़कर, कर्मरज से मुक्त होकर अर नरेश्वर ने अनुत्तर गति प्राप्त की। ४५.चइत्ता भारहं वासं चक्कवट्टी नराहिओ। चइत्ता उत्तमे भोए महापउमे तवं चरे॥ विपुल राज्य, सेना और वाहन तथा उत्तम भोगों को छोड़कर महापद्म चक्रवर्ती ने तप का आचरण किया। ४६. एगच्छत्तं पसाहित्ता महिं माणनिसूरणो। हरिसेणो मणुस्सिंदो पत्तो गइमणुत्तरं।। शत्रु-राजाओं का मान-मर्दन करने वाले हरिषेण चक्रवर्ती ने पृथ्वी पर एक-छत्र शासन किया, फिर अनुत्तर गति प्राप्त की। ४७.अन्निओ रायसहस्सेहिं सपरिच्चाई दमं चरे। जयनामो जिणक्खायं पत्तो गइमणुत्तरं। जय चक्रवर्ती ने हजार राजाओं के साथ राज्य का परित्याग कर जिनभाषित दम का आचरण किया और अनुत्तर गति प्राप्त की।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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