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________________ आत्मा का दर्शन २०. समणस्स भगवओ महावीरस्स चत्तारि सया वाईणं सदेवमणुयासुराए वाए अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था । २१. समणस्स महावीरस्स भगवओ अंतेवासिसयाइं सिद्धाइं जाव सव्वदुक्खप्पहीणाई, चउदस अज्जियासयाइं सिद्धानं । ५०८ सत्त २२. समणस्स भगवओ महावीरस्स अट्ठसया अणुत्तरोववाइयाणं गइकल्लाणाणं ट्ठिइकल्लाणाणं आगमेसिभद्दाणं उक्कोसिया अणुत्तरोववाइयाणं संपया होत्था । २३. समणस्स भगवओ महावीरस्स दुव अंतकडभूमी होत्था, तं जहा - जुगंतकडभूमी य परियायंतकडभूमी य । जाव तच्चाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकडभूमी चउवासपरियाए अंतमकासी । २४. समणस्स भगवओ महावीरस्स कासगोत्तस्स अज्जसुहम्मे थेरे अंतेवासी अग्गिवेसायणसगोत्ते । २५. थेरस्स णं अज्जसुहम्मस्स अग्गिवेसायणसगोत्तस्स अज्जजंबुनामे थेरे अंतेवासी कासवगोत्ते । २६. थेरस्स णं अज्जजंबुनामस्स कासवगोत्तस्स अज्जप्पभवे थेरे अंतेवासी कच्चायणसगोत्ते । २७. थेरस्स णं अज्जप्पभवस्स कच्चायणसगोत्तस्स अज्जसेज्जंभवे थेरे अंतेवासी मणगपिया वच्छसगोत्ते । खण्ड-४ श्रमण भगवान महावीर के ४०० वादी - शास्त्रार्थ कुशल शिष्य थे। मनुष्य की बात ही क्या, वे देव और असुर से भी वाद में पराजित नहीं होते थे। यह उनकी वादी - शिष्यों की उत्कृष्ट संपदा थी । स्थविरावलि श्रमण भगवान महावीर के ७०० अंतेवासी श्रमण तथा १४०० आर्यिकाएं सिद्ध हुईं यावत् सब दुःखों का क्षय किया । श्रमण भगवान महावीर के ८०० शिष्य अनुत्तरोपपातिक देव हुए। उनकी गति कल्याणकारी है, स्थिति कल्याणकारी है और उनका भविष्य भी कल्याणकारी है। यह उनकी अनुत्तर विमान में उत्पन्न होने वाले शिष्यों की उत्कृष्ट संपदा थी। श्रमण भगवान महावीर के दो अंतकर भूमियां थीं१. युगांतकर भूमि २. पर्यायांतकर भूमि । श्रमण भगवान महावीर के बाद तीसरे पुरुषयुग-जंबू स्वामी तक युगान्तकर भूमि - निर्वाण गमन का क्रम रहा। भगवान महावीर को केवलज्ञान हुए चार वर्ष हुए थे, उसी समय से उनके शिष्य मोक्ष जाने लगे। काश्यपगोत्रीय श्रमण भगवान महावीर के अंतेवासी शिष्य हुए स्थविर आर्य सुधर्मा । उनका गोत्र था अग्निवैश्यायन । अग्निवैश्यायनगोत्रीय स्थविर आर्य सुधर्मा के अंतेवासी शिष्य हुए स्थविर आर्य जंबू । उनका गोत्र था काश्यप । काश्यपगोत्रीय स्थविर आर्य जंबू के अंतेवासी शिष्य हुए स्थविर आर्य प्रभव। उनका गोत्र था कात्यायन । शिष्य कात्यायनगोत्रीय स्थविर आर्य प्रभव के अंतेवासी हुए स्थविर आर्य शय्यंभव। वे मुनि मनक के पिता थे। उनका गोत्र था वत्स ।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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