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________________ प्रायोगिक दर्शन उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था । ५०७ १३. समणस्स भगवओ महावीरस्स संख सयगपामोक्खाणं समणोवासगाणं एगा सयसाहस्सी अणट्ठिं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासगाणं संपया होत्था। १४. समणस्स भगवओ महावीरस्स सुलसा रेवई पामोक्खाणं समणोवासियाणं तिन्नि सयसाहस्सीओ अट्ठारस य सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियाणं संपया होत्था । १५. समणस्स भगवओ महावीरस्स तिन्नि सया चोस - पुव्वीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं सव्वक्खर - सन्निवाईणं जिणो विव अवितहं वागरमाणाणं, उक्कोसिया चोहसपुव्वीणं संपया होत्था । १६. समणस्स भगवओ महावीरस्स तेरस सया ओहिणाणीणं अतिसेसपत्ताणं उक्कोसिया ओहिणाणीणं संपया होत्था । १७. समणस्स भगवओ महावीरस्स सत्तसया केवलणाणीणं संभिन्नवरनाणदंसणधराणं उक्कोसिया केवलनाणिसंपया होत्था । १८. समणस्स भगवओ महावीरस्स सत्तसया वेउव्वीणं अदेवाणं देवढिपत्ताणं उक्कोसिया वेउव्विसंपया होत्था । १९. समणस्स भगवओ महावीरस्स पंचसया विउलमईणं अड्ढाइज्जेसु दीवेसु दोसु समुद्देसु सत्रीणं पंचिंदियाणं पज्जत्तगाणं जीवाणं मणोगए भावे जाणमाणाणं उक्कोसिया विउलमईणं संपया होत्था । संपदा थी। अ. ७ : जिनशासन श्रमण भगवान महावीर के शंख, शतक आदि १ लाख ५९ हजार श्रमणोपासक (बारहव्रती ) थे। यह उनकी उत्कृष्ट श्रमणोपासक संपदा थी। श्रमण भगवान महावीर के सुलसा, रेवती आदि ३ लाख १८ हजार श्रमणोपासिकाएं थीं। यह उनकी उत्कृष्ट श्रमणोपासका संपदा थी । श्रमण भगवान महावीर के ३०० चतुर्दशपूर्वी थे। वे जिन नहीं थे, किन्तु जिनतुल्य थे। उन्हें सर्वाक्षरसन्निपाती लब्धि - अक्षरों के सब संयोगों को जानने वाली शक्ति प्राप्त थी। वे जिन की भांति यथार्थ व्याकरण-तत्त्व का निरूपण और प्रश्न का समाधान करते थे। यह उनकी चतुर्दश पूर्वियों की उत्कृष्ट संपदा थी। श्रमण भगवान महावीर के १३०० अतिशय प्राप्त अवधिज्ञानी थे। यह उनकी अवधिज्ञानियों की उत्कृष्ट संपदा थी। श्रमण भगवान महावीर के ७०० संपूर्ण ज्ञानदर्शन के धारक केवलज्ञानी थे। यह उनकी केवलज्ञानियों की उत्कृष्ट संपदा थी। श्रमण भगवान महावीर के ७०० वैक्रिय लब्धि संपन्न शिष्य थे। वे देव नहीं थे, किन्तु देवर्द्धि-नाना रूप निर्माण की शक्ति से सम्पन्न थे । यह उनकी वैक्रियलब्धि संपन्न शिष्यों की उत्कृष्ट संपदा थी । श्रमण भगवान महावीर के ५०० विपुलमतिवाले मनः पर्यवज्ञानी थे। वे अढ़ाई द्वीप और दो समुद्रों में विद्यमान पर्याप्त संज्ञी पंचेंद्रिय जीवों के मनोगत भावों को जानते थे। यह उनकी विपुलमतिवाले शिष्यों की उत्कृष्ट संपदा थी।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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