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आत्मा का दर्शन
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खण्ड-४
विसंधि सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं। एत्थं ठिया जीवा मार्ग, निर्याण का मार्ग और निर्वाण का मार्ग है। अवितथ सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्व. है, अविच्छिन्न है। सब दुःखों के क्षय का मार्ग है। इस दुक्खाणं अंतं करेंति।
निग्रंथ प्रवचन में स्थित जीव सिद्ध हो जाते हैं, प्रशान्त हो जाते हैं, मुक्त हो जाते हैं, परिनिर्वाण को प्राप्त हो जाते हैं
और सब दुःखों का अन्त कर देते हैं।
तीर्थंकर परम्परा ८. नमो चउवीसाए तित्थगराणं उसभादिमहावीर- ऋषभ से लेकर महावीर पर्यंत २४ तीर्थंकर का पज्जवसाणाणं
नमस्कार है। वे २४ तीर्थंकर हैंउसभमजियं च वदे
१. ऋषभ
२. अजित संभवमभिनंदणं च सुमइंच। ३. संभव
४. अभिनंदन पउमप्पहं सुपासं
५. सुमति ६. पद्मप्रभ. जिणं च चंदप्पहं वदे॥ ७. सुपार्श्व ८. चन्द्रप्रभ सुविहिं च पुप्फदंतं
९. सुविधि/पुष्पदंत १०. शीतल सीअल सिज्जंस वासुपुज्नं च। ११. श्रेयांस १२. वासुपूज्य विमलमणंतं च जिणं
१३. विमल १४. अनन्त धम्म संतिं च वंदामि॥ १५. धर्म . १६. शाति कुंथु अरं च मल्लिं
१८. अर वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च। १९. मल्लि . २०. मुनिसुव्रत वंदामि रिट्ठनेमिं
. २१. नमि
२२. अरिष्टनेमि पासं तह वद्धमाणं च॥ . २३. पार्श्व २४. वर्द्धमान
भगवान महावीर की शिष्य संपदा ९. समणे भगवं महावीरे कासवगोत्ते णं। श्रमण भगवान महावीर। उनका गोत्र था काश्यप।
१७. कुंथु
।
श्रमण भगवान महावीर के ११ गणधर थे। जैसे
१०.समणस्स णं भगवओ महावीरस्स एक्कारस गणहरा होत्या, तं जहा१. इंदभूती २. अग्गिभूती ३. वायुभूती ४. वियत्ते ५.सुहम्मे ६. मंडिए ७. मोरियपुत्ते ८. अकंपिए ९. अयलभाया १०. मेतज्जे ११. पभासे
१. इन्द्रभूति २. अग्निभूति ४. व्यक्त ५. सुधर्मा ७. मौर्यपुत्र ८. अकंपित १०. मेतार्य ११ प्रभास
३. वायुभूति ६. मंडित ९. अचलभ्राता
११......समणस्स भगवओ महावीरस्स इंदभूइपामोक्खाओ चोइससमणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया होत्था।
श्रमण भगवान महावीर के इन्द्रभूति आदि १४ हजार शिष्य थे। यह उनकी उत्कृष्ट श्रमण संपदा थी।
१२.समणस्स भगवओ महावीरस्स अज्जचंदणापामोक्खाओ छत्तीसं अज्जियासाहस्सीओ
श्रमण भगवान महावीर के आर्या चंदनबाला आदि ३६ हजार साध्वियां थीं। यह उनकी उत्कृष्ट आर्यिका