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आत्मा का दर्शन
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२४.अठविहा गणिसंपया पण्णत्ता. तं जहा
१. आचारसंपया २. सुयसंपया ३. सरीरसंपया ४. वयणसंपया ५. वायणासंपया ६. मतिसंपया ७. पओगसंपया ८. संगहपरिण्णा।
गणिसंपदा
गणिसंपदा के आठ प्रकार हैं१. आचार सम्पदा २. श्रुत सम्पदा ३. शरीर सम्पदा ४. वचन सम्पदा ५. वाचना सम्पदा ६. मति सम्पदा ७. प्रयोग सम्पदा ८. संग्रह सम्पदा।
साधु-साध्वी : पारस्परिक व्यवहार २५.कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अहाराइणियाए साधु-साध्वियां यथारात्निक-बड़े-छोटे के क्रम से किइमम्मं करेत्तए।
वंदन करें।
२६. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा ।
आहाराइणियाए सेज्जा संथारए पडिग्गाहित्तए।
साधु-साध्वियां यथारात्निक-बड़े-छोटे के क्रम से शय्या-संस्तारक-स्थान-बिछौना ग्रहण करें।
२७.कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अहाराइणियाए
चेलाइं.पडिग्गाहित्तए।
साधु-साध्वियां यथारात्निक-बड़े-छोटे के क्रम से वस्त्र लें।
२८.निग्गंथस्स णं नवडहरतरुणस्स आयरियउवज्झाए
वीसंभेज्जा, नो से कप्पइ अणायरिय-उवज्झायस्स होत्तए। कप्पइ से पुव्वं आयरियं उहिसावेत्ता तओ से पच्छा उवज्झायं। किमाहु भंते? दुसंगहिए समणे निग्गंथे. तं जहा-आयरिएणं उवज्झाएणं य।
शैक्ष (नवदीक्षित और बाल) व तरुण मुनि का आचार्य-उपाध्याय दिवंगत हो,जाए तो वह आचार्यउपाध्याय के बिना नहीं रह सकता।
उसे पहले आचार्य और बाद में उपाध्याय की स्थापना करनी चाहिए।
भंते! ऐसा क्यों?
श्रमण निग्रंथ द्विसंगृहीत-आचार्य और उपाध्याय के आदेश-निर्देश में रहने वाला होता है।
२९.निग्गंथीए णं नवडहरतरुणीए आयरियउवज्झाए
पवत्तणी य वीसंभेज्जा, नो से कप्पइ अणायरिय- उवज्झाइयाए अपवत्तणीए य होत्तए। कप्पइ से पुव्वं आयरियं उहिसावेत्ता तओ पच्छा उवज्झायं तओ पच्छा पवत्तिणिं। से किमाहु भंते? तिसंगहिया समणी निग्गंथी, तं जहा-आयरिएणं उवज्झाएणं पवत्तिणीए य।
शैक्ष (नवदीक्षित और बाल) व तरुण साध्वी का आचार्य, उपाध्याय व प्रवर्तिनी दिवंगत हो जाए तो वह आचार्य, उपाध्याय व प्रवर्तिनी के बिना नहीं रह सकती।
उसे पहले आचार्य, फिर उपाध्याय और बाद में प्रवर्तिनी की स्थापना करनी चाहिए। भंते! ऐसा क्यों?
साध्वी त्रिसंगृहीत-आचार्य, उपाध्याय और प्रवर्तिनी के आदेश-निर्देश में रहने वाली होती है।