________________
प्रायोगिक दर्शन
४९३
संघबद्ध साधना के सूत्र
जतितव्वं
११. अट्ठहिं ठाणेहिं सम्मं घडितव्वं परक्कमितव्वं अस्सिं च णं अट्ठे णो पमाएतव्वं भवति
१. असुयाणं धम्माणं सम्मं सुणणत्ताए अब्भुट्ठेतव्वं भवति ।
२. सुत्ताणे धम्माणं ओगिण्हणयाए उवधारणयाए अभुट्ठेतव्वं भवति ।
३. णवाणं कम्माणं संजमेणमकरणताए अब्भुट्ठेयव्वं भवति ।
४. पोराणाणं कम्माणं तवसा विगिंचणताएं विसोहणता अब्र्भुट्ठेतव्वं भवति ।
५. असंगिहीतपरिजणस्स संगिण्हणताए अब्भुट्ठेयव्वं भवति ।
६. सेहं आयारगोयरं गाहणताए अब्भुट्ठेयव्वं भवति ।
७. गिलाणस्स अगिलाए, वेयावच्चकरणताए अट्ठेयव्वं भवति ।
८. साहम्मियाणमधिकरणंसि उप्पण्णंसि तत्थ अणिस्सितोवस्सितो अपक्खग्गाही मज्झत्थ भावभूते कहण्णु साहम्मिया अप्पसद्दा अप्पझंझा अप्पतुमतुमा उवसामणताए अब्भुट्ठेयव्वं भवति ।
१२. पढमा आवस्सिया नाम बिइया य निसीहिया । आपुच्छणा य तझ्या चउत्थी पडिपुच्छणा ॥ पंचमा छंदणा नाम इच्छाकारो य छट्ठओ । सत्तमो मिच्छकारो य तहक्कारो य अट्ठमो ॥ अब्भुट्ठाणं नवमं, दसमा उवसंपदा । एसा दसंगा साहूणं सामायारी पवेइया ||
सामाचारी
१३. पंचविहे ववहारे पण्णत्ते, तं जहा'आगमे, सुते, आणा, धारणा,
जीते।
१. व्यवहार - प्रवृत्ति और निवृत्ति की हेतुभूत व्यवस्था ।
मुनि आठ स्थानों में सम्यक् चेष्टा, सम्यक् प्रयत्न और सम्यक् पराक्रम करे। इन आठ स्थानों में किंचित् भी प्रमाद न करे
१. अश्रुत धर्मों-विषयों को सम्यक् प्रकार से सुनने के लिए जागरूक रहे।
अ. ६ : धमेघ
२. सुने हुए धर्मों-विषयों के ग्रहण और उनकी स्थिरता के लिए जागरूक रहे ।
३. संयम के द्वारा नए कर्मों का संचय न करने के लिए जागरूक रहे।
४. तपस्या के द्वारा पुराने कर्मों का पृथक्करण और विशोधन करने के लिए जागरूक रहे ।
५. जो शिष्य नहीं बने हैं, उनका संग्रह करने के लिए जागरूक रहे।
६. जो शिष्य बन चुके हैं, उन्हें आचार-गोचर सिखाने के लिए जागरूक रहे।
७. ग्लान की अग्लानभाव से परिचर्या करने के लिए जागरूक रहे।
८. साधर्मिकों में परस्पर कलह उत्पन्न होने पर अनिश्रितोपाश्रित- लिप्सा और अपेक्षा रहित निष्पक्ष एवं मध्यस्थ भाव से उन्हें उपशांत करने के लिए जागरूक रहे। यह चिंतन करे कि ये मेरे साधर्मिक किस प्रकार अपशब्द, कलह और तू-तू, मैं-मैं से मुक्त हों ।
भगवान ने साधुओं के लिए दस प्रकार की सामाचारी का निरूपण किया है
१. आवश्यकी
४. प्रतिपृच्छा ७. मिथ्याकर
१०. उपसंपदा ।
व्यवस्था : संघीय व्यवस्था के सूत्र
२. नैषेधिकी
५. छंदना
८. तथाकार
३. आपृच्छा
६. इच्छाकार ९. अभ्युत्थान
व्यवहार' के पांच प्रकार हैं
१. आगम २. श्रुत ३. आज्ञा ४. धारणा ५. जीत ।