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________________ आत्मा का दर्शन अन्नया घरं पलित्तं । तत्थ अप्पदन्नेहिं सो न चतिओ नीणिउं तत्थेव रडतो दड्ढो । ७. नाणं सविसयनिययं मम्गण्णू दिट्ठतो न नाणामित्तेण कज्जनिप्फत्ती । ८. आउज्जनट्टकुसलावि जोगं अजुंजाणी ९. जाणतोऽवि य तरिउं सो वुझइ सोए १०. सुबहुपि सुमहीयं अंधस्स जह पलित्ता होइ सचिट्ठो अचिट्ठो य ॥ ४८२ ज्ञान-क्रिया नट्टिया तं जणं न तोसेइ । १२. जहा खरो चंदणभारवाही, निंद खिंसं च सा लहई ॥ काइयजोगं न जुंजइ नईए । एवं नाणी चरणहीणो ॥ किं काही चरणविप्पहीणस्स ? दीवसयसहस्सकोडीवि ॥ ११. अप्पंप सुयमहीयं पयासयं होई चरणजुत्तस्स । इक्कोव जह पईवो सचक्खुअस्सा पयासेई | एवं खु नाणी चरणेण हीणो, भारस्स भागी न हु चंदणस्स । नास भागी न हु सोम्मईए ।। खण्ड - ४ एक दिन घर में आग लग गई। कुटुम्बीजन आत्मरक्षा तत्पर हो गए। उस वृद्ध को बाहर निकालना भूल गए । वह रोता- चिल्लाता वहीं जल गया। १३. हयं नाणं कियाहीणं, हया अन्नाणओ किया । पासंतो पंगुलो दड्ढो, धावमाणो अ अंधओ ॥ १. आत्मरक्षण तत्पर ज्ञान का अपना निश्चित विषय है। उसकी सीमा है। मात्र ज्ञान से कार्य निष्पन्न नहीं होता । दृष्टांत की भाषा में कहा गया- मार्ग को जानने वाला यदि सचेष्ट है तो वह लक्ष्य तक पहुंच जाता है और यदि सचेष्ट नहीं है तो एक चरण भी आगे नहीं बढ़ पाता। वाद्यकला और नृत्यकला में कुशल नर्तकी जब तक नृत्य नहीं करती, तब तक वह लोगों को संतुष्ट नहीं कर सकती, अपितु वह निंदा और अवहेलना को ही प्राप्त होती है। तैरने की विद्या को जानता हुआ तैराक यदि तैरने के लिए नदी में अपने हाथ-पांव नहीं फैलाता है तो वह प्रवाह में बह जाता है, वैसे ही चरित्रहीन ज्ञानी पुरुष लक्ष्य को नहीं पा सकता। पढ़ा हुआ बहुत ज्ञान भी आचारहीन को क्या लाभ देगा ? अंधे व्यक्ति के सामने करोड़ों दीपक जलाने का क्या अर्थ है ? पढ़ा हुआ अल्प ज्ञान भी आचारवान को प्रकाश से भर देता है। चक्षुष्मान् को प्रकाश देने के लिए एक दीपक भी काफी है। चंदन का भार ढोने वाला गधा केवल भार का भागी होता है, चंदन की सुगंध का नहीं। उसी प्रकार चरित्रहीन ज्ञानी केवल जान लेता है, सद्गति को प्राप्त नहीं कर सकता। आचारहीन ज्ञान पंगु है और ज्ञानहीन आचार अंधा है। पंगु आग को देखता हुआ भी जल जाता है और अंधा
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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