________________
ज्ञान-क्रिया-समन्वय
१. जावन्तऽविज्जापुरिसा सव्वे ते दुक्खसंभवा । लुप्यन्ति बहुसो मूढा संसारंमि अनंत ॥
२. समिक्ख पंडिए तम्हा पासज़ाईपहे बहू । अप्पणा सच्चमेसेज्जा मेत्तिं भएसु कप्पए ।
४. भणंता अकरेंता य बन्धमोक्खपइण्णिणो । वायाविरियमेत्तेण समासासेिं अप्पयं ॥
एकांतवाद का मिथ्या आश्वासन ३. इहमेगे उ मन्नन्ति अप्पच्चक्खाय पावगं । आयरियं विदिताणं सव्वदुक्खा विमुच्चई ॥
५. न चित्ता तायए भासा कओ विज्जाणुसासणं । विसन्ना पावकम्मेहिं बाला पंडियमाणिणो ॥
जितने अविद्यावान् पुरुष हैं वे सब दुःख को उत्पन्न करने वाले हैं। वे मूर्च्छा से अभिभूत होकर अनन्त संसार बार-बार लुप्त होते हैं, विनष्ट होते हैं।
इसलिए पंडित पुरुष पाशों - बंधनों व जन्म-मरण के मार्गों की समीक्षा करे। स्वयं सत्य की खोज करे और सबके प्रति मैत्री का आचरण करे।
६. उज्जेणी नाम नगरी । तत्था सोमिलो नाम बंभणो परिवसई । सो य अंधलीभूओ । तस्स य अट्ठ पुत्ता। तेसिं अट्ठ भज्जाओ । सो पुत्तेहिं भन्नतिअच्छीणं किरिया कीरउ । सो पडिभणइ-तुम्भ अट्ठण्णं पुत्ताणं सोलस अच्छीणि । सुण्हाण वि सोलस। बंभणीए दोन्नि, एते चउत्तीसं । अन्नस्स य परियणस्स जाणि अच्छीणि ताणि सव्वाणि मम । 'एते चेव पभूया ।
कुछ लोग ऐसा मानते हैं - पाप का त्याग किए बिना ही तत्त्व को जानने मात्र से जीव सब दुःखों से मुक्त हो जाता है।
ज्ञान से ही मोक्ष होता है जो ऐसा कहते हैं, पर उसके लिए कोई क्रिया नहीं करते, वे केवल बंध और मोक्ष के सिद्धांत की स्थापना करने वाले हैं। वे वाक् शौर्य से अपने आपको आश्वस्त करते हैं।
विविध भाषाएं त्राण नहीं होतीं। विद्या का अनुशासन भी कहां त्राण देता है ? अपने आपको पंडित मानने वाले अज्ञानी मनुष्य पाप कर्मों द्वारा विषाद को प्राप्त हो रहे हैं।
एकांतवादी दृष्टिकोण का परिणाम
उज्जयिनी नगरी । सोमिल ब्राह्मण। उसकी आंखों में मोतिया उतर आया। उसके आठ पुत्र और आठ पुत्रवधुएं थीं। एक दिन पुत्रों ने कहा- आप आंखों की शल्यचिकित्सा करवा लें। उसने उत्तर दिया- तुम आठ पुत्र हो । तुम्हारी सोलह आंखें हैं। सोलह ही पुत्रवधुओं की आंखें हैं और दो आंखें तुम्हारी माता की हैं। इस प्रकार ये चौंतीस आंखें हैं। अन्य परिजनों की जितनी आंखें हैं, वे भी सब मेरी ही हैं। यह ही बहुत हैं।