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आत्मा का दर्शन
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खण्ड-४
श्रमणोपासक की प्रतिमाएं ९३.एक्कारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
१. सणसावए। २. कयव्वयकम्मे। ३. सामाइअकडे। ४. पोसहोववासनिरए। ५. दिया बंभयारी रत्तिं परिमाणकडे।
६. दियावि राओवि बंभयारी असिणाई वियडभोई मोलिकडे।
श्रमणोपासक की ग्यारह प्रतिमाएं प्रज्ञप्त हैं१. दर्शन श्रावक। २. कृतव्रत कर्म। ३. कृतसामायिक। ४. पौषाधोपवासनिरत।
५. दिन में ब्रह्मचारी और रात्रि में अब्रह्मचर्य का । परिमाण करने वाला।
६. दिन और रात में ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला, स्नान न करने वाला, दिन में भोजन करने वाला और कच्छा न बांधने वाला।
७. सचित्त परित्यागी। ८. आरंभ परित्यागी। ९. प्रेष्य परित्यागी। १०. उद्दिष्टभक्त-परित्यागी। ११. श्रमणभूत।
७. सचित्तपरिण्णाए। ८. आरंभपरिणाए। ९. पेसपरिण्णाए। १०. उद्दिट्ठभत्तपरिण्णाए। ११. समणभूए।
श्रमणोपासक के तीन मनोरथ ९४.तिहिं ठाणेहिं समणोवासए महाणिज्जरे महा
पज्जवसाणे भवति, तं जहा१. कया णं अहं अप्पं वा बाहुयं वा परिग्गहं परिचइस्सामि? २. कया णं अहं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारितं पव्वइस्सामि? ३. कया णं अहं अपच्छिममारणंतियसलेहणा- झूसणा-झूसिते भत्तपाणपडियाइक्खित्ते पाओवगते कालं अणवकंखमाणे विहरिस्सामि?
तीन स्थानों से श्रमणोपासक महानिर्जरा तथा महापर्यवसान वाला होता है- '
१. कब मैं अल्प या बहुत परिग्रह का परित्याग करूंगा।
२. कब मैं मुंड हो अगार से अनगारत्व में प्रव्रजित होऊंगा।
३. कब मैं अपश्चिम-मारणांतिक संलेखना की आराधना से युक्त हो, भक्त-पान का परित्याग कर, प्रायोपगमन अनशन कर मृत्यु की आकांक्षा नहीं करता हुआ विहरण करूंगा।
श्रमणोपासक के चार आश्वास स्थान ९५.भारण्णं वहमाणस्स चत्तारि आसाया पण्णत्ता, तं
जहा१. जत्थ णं अंसाओ अंसं साहरइ, तत्थ वि एगे आसासे पण्णत्ते। २. जत्थवि य णं उच्चारं वा पासवणं वा परिट्ठवेति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते। ३. जत्थवि य णं णागकुमारावासंसि वा सुवण्ण
भारवाही के लिए चार आश्वास स्थान (विश्राम स्थल) प्रज्ञप्त हैं
१. पहला आश्वास तब होता है, जब वह भार को एक कंधे से दूसरे कंधे पर रख लेता है।
२. दूसरा आश्वास तब होता है, जब वह लघुशंका या बड़ी शंका करता है।
३. तीसरा आश्वास तब होता है, जब वह नागकुमार,