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________________ प्रायोगिक दर्शन ४७७ कुमाराचासंसि वासं उवेति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते । ४. जत्थवि य णं आवकहाए चिट्ठति, तत्थ विय से एगे आसासे पण्णत्ते । एवामेव समणोवासगस्स चत्तारि आसासा पण्णत्ता, त जहातं १. जत्थवि य णं सीलव्वत-गुणव्वत-वेरमणपच्चक्खाण-पोसहोववासाइं पडिवज्जति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते । २. जत्थवि य णं सामाइयं देसावगासियं सम्ममणुपाले, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते । ३. जत्थवि य णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालेइ, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते । ४. जत्थवि य णं अपच्छिम-मारणंतियसंलेहणाझूसणा-झूसिते. भत्तपाण -पडियाइक्खित्ते पाओवगते कालमणवकंखमाणे विहरति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते । श्रमणोपासक के प्रकार ९६. चत्तारि समणोवासगा पण्णत्ता, तं जहा१. अम्मापिति समाणे २. भातिसमाणे ३. मित्तसमाणे ४. सवत्तिसमाणे । ९७. चत्तारि समणोवासगा पण्णत्ता, तं जहा १. अागसमाणे २. पडागसमाणे ३. खाणुसमा ४. खरकंटयसमाणे । अ. ४ : सम्यक् चारित्र सुपर्णकुमार आदि के आवासों में निवास करता है। ४. चौथा आश्वास तब होता है, जब वह कार्य को सम्पन्न कर भारमुक्त हो जाता है। इसी प्रकार श्रमणोपासक के लिए भी चार आश्वास प्रज्ञप्त हैं १. जब वह शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास को स्वीकार करता है, तब पहला आश्वास होता है। २. जब वह सामायिक तथा देशावकाशिक व्रत का सम्यक् अनुपालन करता है, तब दूसरा आश्वास होता है। ३. जब वह अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या तथा पूर्णिमा के दिन परिपूर्ण-दिनरात भर पौषध का सम्यक् अनुपालन करता है, तब तीसरा आश्वास होता है। ४. जब वह अंतिम मारणांतिक संलेखना की आराधना से युक्त होकर, भक्तपान का त्याग कर, प्रायोपगमन अनशन स्वीकार कर, मृत्यु के लिए अनुत्सुक होकर विहार करता है, तब चौथा आश्वास होता है। ... श्रमणोपासक के चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं १. माता-पिता के समान २. भाई के समान । ३. मित्र के समान ४. सोत के समान । श्रमणोपासक के चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं १. दर्पण के समान २. पताका के समान ३. स्थाणु-सूखे ठूंठ के समान ४. तीखे कांटों के समान ।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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