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अ. ४ : सम्यक्चारित्र
प्रायोगिक दर्शन
• असहेज्जा।
• सत्य के प्रति निश्चल-विपत्ति के क्षणों में भी किसी दिव्य शक्ति के सहयोग की अपेक्षा न रखने वाले।
• देवगणों द्वारा निग्रंथ प्रवचन से अविचलनीय।
• देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ
अणइक्कमणिज्जा। • निग्गंथे पावयणे निस्संकिया निक्कंखिया
निवितिगिच्छा। • विणिच्छियट्ठा। • अद्विमिंजपेमाणुरागरत्ता।
• चाउद्दसट्ठमुहिठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं
पोसहं सम्मं अणुपालेत्ता। . . फासुएसणिज्जेणं असण-पाण....विहरंति।
• अप्पिच्छा। • अप्पारंभा। • अप्पपरिग्गहा।
• धम्मिया। : • धम्माणुया।
• धम्मिट्ठा। .धम्मक्खाई।
धम्मप्पलोई। .धम्मपलज्जणा। .धम्मसमुदायारा।
धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा। • सुसीला। .सुव्वया। • सुप्पडियाणंदा।
• निग्रंथ प्रवचन में शंका रहित, कांक्षा रहित, विचिकित्सा रहित।
• यथार्थ का निश्चय करने वाले।
.निग्रंथ प्रवचन में प्रेमानराग से रक्त अस्थिमज्जा वाले।
• चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या, पूर्णिमा को प्रतिपूर्ण पौषध का सम्यक् पालन करने वाले।
• श्रमण निग्रंथों का प्रासुक-एषणीय अशन, पान, पीठ फलक आदि का दान देने वाले।
• अल्प इच्छा वाले। • अल्प आरंभ (हिंसा) वाले। • अल्प संग्रह वाले। • धार्मिक। • धर्म का अनुगमन करने वाले। • धर्मिष्ठ। • धर्म का आख्यान करने वाले। • धर्म के प्रति जागरूक • धर्म में अनुरक्त • धर्मयुक्त शील और आचार वाले। • धर्म के द्वारा आजीविका करने वाले। • सुशील।
सुव्रत। • प्रत्युपकारकारी।
उपासना के पांच अभिगम ९२.. सच्चित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए।
• अचित्ताणं दव्वाणं य विओसरणयाए।
• एगसाडिएणं उत्तरासंगकरणेणं। • चक्खुप्फासे अंजलिप्पग्गहेणं। मणसो एगत्तीकरणेणं।
• सचित द्रव्यों को छोड़ना, जैसे-पुष्प आदि।
• अचित्त द्रव्यों को भी छोड़ना, जैसे-छत्र, शस्त्र, जूते आदि।
• एक-पटी चादर से उत्तरासंग करना। • गुरु के दृष्टिगोचर होते ही हाथ जोड़ना। • मन को उसी में एकाग्र करना।