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आत्मा का दर्शन
समणोवासगं हीलह निदंह खिंसह गरहह अवमण्णह । संखेणं समणोवासए पियधम्मे चेव, दढधम्मे चेव, सुदक्खु जागरियं जागरिए ।
८६. भंतेति ! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमंसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी - कतिविहा णं भंते! जागरिया पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा जागरिया पण्णत्ता, तं जहा
१. बुद्धजागरिया
२. अबुद्धजागरिया
३. सुदक्खुजागरिया ।
८७. से केणट्ठेणं भंते!.
गोयमा ! जे इमे अरहंता भगवंतो उप्पण्णनाणदंसणधरा सव्वण्णू सव्वदरिसी एएणं बुद्धा बुद्धजागरियं जागरंति ।
भगवंतो.....मणसमिया
८८. जे इमे अणगारा वइसमिया कायसमिया मणगुत्ता वइगुत्ता कायगुत्ता.... एए णं अबुद्धा अबुद्धजागरियं जागरंति ।
८९. जे इमे समणोवासगा अभिगय-जीवाजीवा .... एए णं सुदक्खुजागरियं जागरंति ।
९०. तए णं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमट्ठे सोच्चा...... जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छंति, वंदंति, नमंसंति, वंदित्ता नमसित्ता एयमठं सम्मं विणएणं भुज्जो भुज्जो खामेंति ।
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श्रमणोपासक का स्वरूप ९१. • अभिगयजीवाजीवा
• उवलद्वपुण्णपावा ।
• आसव संवर-निज्जर- किरिया अहिगरणबंधमोक्खकुसला ।
खण्ड - ४
श्रमणोपासक शंख की अवहेलना मत करो। निंदा मत करो । तिरस्कार मत करो। गर्हा और अवमानना मत करो। शंख श्रमणोपासक प्रियधर्मा है, दृढधर्मा है और सुदक्खु जागरिका – सम्यक् द्रष्टा की जागरिका में जागृत है।
गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर को वंदना की, नमस्कार किया और बोले- भंते! जागरिका कितने प्रकार की होती है ? गौतम! जागरिका के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं
१. बुद्ध जागरिका ।
२. अबुद्ध जागरिका ।
३. सुदक्खु जागरिका ।
भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है ? गौतम ! जो अर्हत् भगवान उत्पन्न ज्ञान दर्शन के धारक, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हैं, वे बुद्ध हैं। उनकी जागरिका बुद्ध जागरिका है।
जो अनगार भगवान मन, वचन, काया से समित और गुप्त हैं, वे अबुद्ध हैं। उनकी जागरिका अबुद्ध जागरिका है।
जो श्रमणोपासक जीव और अंजीव के ज्ञाता उनकी जागरिका सुदक्खु जागरिका है।
पोक्खली आदि श्रमणोपासक श्रमण भगवान महावीर से यह सुनकर शंख श्रमणोपासक के पास आए। वंदननमस्कार किया और अपने अविनय के लिए बार-बार क्षमा मांगी।
• जीव और अजीव के ज्ञाता ।
• पुण्य और पाप के मर्मज्ञ ।
• आश्रव, संवर, निर्जरा, क्रिया, अधिकरण, बंध और मोक्ष के विषय में कुशल |