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________________ प्रायोगिक दर्शन पौषधोपवास व्रत के अतिचार ७५. पोसहोववासस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा १. अप्पडिलेहिय - दुप्पडिलेहिय-सिज्जासंथारे। २. अप्पमज्जिय- दुप्पमज्जिय-सिज्जासंथारे। ३. अप्पडिलेहिय- दुप्पडिलेहिय-उच्चारपासवणभूमी । 8. अप्पमज्जिय- दुप्पमज्जिय-उच्चारपासवण भूमी । ५. पोसहोववासस्स सम्मं अणणुपालणया । यथासंविभाग व्रत के अतिचार ७६..... अहासंविभागस्स पंच समणोवासणं अतियारा जाणिवव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा १. सचित्तनिक्खेवणया । २. सचित्तपिहणया । ३. कालातिक्कमे । ४. परववदेसे। ४७१ ५. मच्छरियया । संलेखना के अतिचार ७७. अपच्छिममारणंतियसंलेहणाझूसणाराहणाए पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा १. इहलोगासंसप्पओगे । २. परलोगासंसप्पओगे । ३. जीवियासंसप्पओगे । ४. मरणासंसप्पओगे । ५. कामभोगासंसप्पओगे । मानंद की धर्मजागरिका ७८. तए णं तस्स आणंदस्स समणोवासगस्स च्चावएहिं सीलव्वय-गुण- वेरमणपच्चक्खाण अ. ४ : सम्यक् चारित्र श्रमणोपासक के लिए पौषधोपवास व्रत के पांच अतिचार ज्ञातव्य हैं, आचरणीय नहीं हैं १. स्थान और बिछौने का प्रतिलेखन न करना अथवा सम्यक् प्रकार से न करना । २. स्थान और बिछौने का प्रमार्जन न करना अथवा सम्यक् प्रकार से न करना । ३. उच्चार- प्रस्रवण भूमि का प्रतिलेखन न करना अथवा सम्यक् प्रकार से न करना । ४. उच्चार- प्रस्रवण भूमि का प्रमार्जन न करना अथवा सम्यक् प्रकार से न करना । ५. पौषधव्रत का सम्यक् प्रकार से पालन न करना । श्रमणोपासक के लिए यथासंविभाग व्रत के पांच अतिचार ज्ञातव्य हैं, आचरणीय नहीं हैं १. मुनि के लिए ग्रहणीय वस्तु को सचित्त वस्तु के ऊपर रखना। २. मुनि के लिए ग्रहणीय वस्तु को सचित्त वस्तु से ढकना । ३. भिक्षा के काल का अतिक्रमण करना । ४. अपनी वस्तु न देने की भावना से दूसरों की बतलाना । ५. दूसरे को दान देते देखकर प्रतिस्पर्धात्मक भाव से दान देना । मारणांतिक संलेखना व्रत के पांच अतिचार ज्ञातव्य हैं, आचरणीय नहीं हैं १. इहलोक संबंधी सुखों की अभिलाषा । २. परलोक संबंधी सुखों की अभिलाषा । ३. जीने की आकांक्षा । ४. मरने की आकांक्षा । ५. काम - भोग की आकांक्षा । श्रमणोपासक आनंद अल्पाधिक मात्रा में शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास के द्वारा
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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