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आत्मा का दर्शन
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• खण्ड-१
अनर्थदंडविरमण व्रत के अतिचार ७२.....अणट्ठादंडवेरमणस्स समणोवासएणं पंच
अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा तं जहा१.कंदप्पे। २. कुक्कुइए।
श्रमणोपासक के लिए अनर्थदंडविरमण व्रत के पांच अतिचार ज्ञातव्य हैं, आचरणीय नहीं हैं
१. कंदर्प-कामोद्दीपक क्रियाएं।
२. कौत्कुच्य-भांड-चेष्टा-भांड की भांति चेष्टा करना, हसोड़ प्रवृत्तियां
३. मौखर्य-वाचालता।
४. संयुक्ताधिकरण-शस्त्रों के पुर्जे तैयार करना एवं उनका संयोजन करना।
५. उपभोग-पारिभोगातिरेक-सीमा से अतिरिक्त उपभोग-परिभोग करना।
३. मोहरिए। ४. संजुत्ताहिकरणे।
५. उवभोगपरिभोगातिरित्ते।
सामायिक व्रत के अतिचार ७३......सामाइयस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा१. मणदुप्पणिहाणे। २. वइदुप्पणिहाणे। ३. कायदुप्पणिहाणे। ४. सामाइयस्स सतिअकरणया। ५. सामाझ्यस्स अणवट्ठियस्स करणया।
श्रमणोपासक के लिए सामायिक व्रत के पांच अतिचार ज्ञातव्य हैं, आचरणीय नहीं हैं
१. मन की असम्यक् प्रवृत्ति। २. वचन की असम्यक् प्रवृत्ति। ३. शरीर की असम्यक् प्रवृत्ति। ४. सामायिक की विस्मृति।
५. नियत समय से पहले सामायिक को सम्पन्न करना।
देशावकाशिक व्रत के अतिचार ७४.देसावगासियस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा१. आणवणप्पओगे।
२. पेसणवणप्पओगे।
श्रमणोपासक के लिए देशावकाशिक व्रत के पांच अतिचार ज्ञातव्य हैं, आचरणीय नहीं हैं
१. आनयनप्रयोग-दिव्रत में क्षेत्र की जो सीमा की हो, उससे बाहर की वस्तु मांगना।
२. प्रेष्यप्रयोग-दिग्वत में क्षेत्र की जो सीमा की हो, उससे बाहर की वस्तु मंगाने के लिए प्रेष्य को भेजना।
३. शब्दानुपात-दिव्रत में क्षेत्र की जो सीमा की हो, उससे बाहर शब्द कर कार्य करवाना।
४. रूपानुपात-दिव्रत में क्षेत्र की जो सीमा की हो. उससे बाहर अंगुली आदि का संकेत कर कार्य करवाना।
५. बहिर्युद्गलप्रक्षेप-दिग्व्रत में क्षेत्र की जो सीमा की हो, उससे बाहर किसी वस्तु को फेंककर कार्य करवाना।
३. सहाणुवाए।
४. रूवाणुवाए।
५. बहियापोग्गलपक्खेवे।
१. जो दिग्व्रत स्वीकार किया है, उसका अल्पकालिक
संक्षेपीकरण देशावकाशिक व्रत है अथवा पूर्ववर्ती व्रतों की
अल्पकाल के लिए और अधिक मर्यादा करना देशावकाशिक व्रत है।