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________________ प्रायोगिक दर्शन ५. सतिअंतरद्धा । उपभोग - परिभोग- परिमाण व्रत के अतिचार ७०..... उवभोग - परिभोग दुविहे पण्णत्ते, तं जहा अतियारा भोयणओ कम्मओ य । पंच भोयणओ समणोवासएणं जाणिव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा१. सचित्ताहारे । २. सचित्तपडिबद्धाहारे । ३. अप्पउलिओसहिभक्खणया । ४. दुप्पउलिओसहिभक्खणया । ५. तुच्छोसहिभक्खणया । कर्मादान ७१. कम्मओ णं समणोवासएणं पण्णरस कम्मादाणाई जाणियव्वाइं न समायरियव्वाइं तं जहा १. इंगालकम्मे २. वणकम्मे ३. साडीकम् ४. भाडीकम् ५. फोडीकम्मे ६. दंतवाणिज्जे ७. लक्खवाणिज्जे ८. रसवाणिज्जे ९. विसवाणिज्जे १०. केसवाणिज्जे ४६९ ११. जंतपीलणकम्मे १२. निल्लंछणकम्मे १३. दवग्गिदावणया १४. सरदहतलागपरिसोसणया १५. असतीजणपोसणया । परिमाण का विस्तार करना । अ. ४ : सम्यक्चारित्र ५. दिशा के परिमाण की विस्मृति । उपभोग - परिभोग के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं- भोजन और कर्म । भोजन की अपेक्षा श्रमणोपासक के पांच अतिचार ज्ञातव्य हैं, आचरणीय नहीं हैं १. प्रत्याख्यान के उपरांत सचित्त वस्तु का आहार करना । २. प्रत्याख्यान के उपरांत सचित्त प्रतिबद्ध वस्तु का आहार करना। कर्म । ३. अपक्व धान्य का आहार करना। ४. अर्द्धपक्व धान्य का आहार करना । ५. असार धान्य का आहार करना । कर्म की अपेक्षा श्रमणोपासक के पन्द्रह कर्मादान ज्ञातव्य हैं, आचरणीय नहीं हैं १. अंगारकर्म - अग्नि के महारंभ वाला उद्योग । २. वनकर्म - वन कटाने का उद्योग । ३. शाकटकर्म - वाहन का उद्योग । ४. भाटककर्म - वाहन के द्वारा माल ढोने का उद्योग । ५. स्फोटकर्म - खदान से खनिज निकालने का उद्योग । ६. दंतवाणिज्य - हाथी दांत आदि का व्यवसाय । ७. लाक्षावाणिज्य - लाखा का व्यवसाय । ८. रसवाणिज्य - शराब आदि का व्यवसाय | ९. विषवाणिज्य - विष का व्यवसाय । १०. केशवाणिज्य - भेड़ आदि के पालन का व्यवसाय । ११. यंत्रपीलन- कोल्हू चलाने का उद्योग । १२. निलांछनकर्म - बैल आदि को नपुंसक बनाने का १३. दवाग्निदानता–जंगलों को जलाना । १४. सरद्रहतडागशोषण - जलाशयों को सुखाना । १५. असतीजनपोषण-मुर्गीपालन तथा हिंस्रप्राणियों का पोषण ।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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