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आत्मा का दर्शन
२. पमायाचरितं ।
३. हिंसप्पयाणं ।
४. पावकम्मोवदेसे।
सामायिक व्रत
५७. सामाइयं नाम सावज्जजोगपरिवज्जणं निरवज्जजोगपडिसेवणं च ।
देशावकाशिक व्रत
५८. दिसिव्वयगहियस्स दिसापरिमाणस्स पइदिणं परिमाणकरणं देसावगासियं ।
पौषधोपवास व्रत
५९. पोसहोववासे चउब्विहे पण्णत्ते, तं जहा१. आहारपोसहे ।
२. सरीरसक्कारपोसहे ।
३. बंभचेरपोसहे ।
४. अब्बावारपोसहे।
अतिथिसंविभाग व्रत ६०. अतिि
अन्नपाणाईणं
संजयाणं दाणं ।
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संविभागो
नाम..... कप्पणिज्जाणं दव्वाणं.... आयाणुग्गहबुद्धीए
संलेखना
६१. अपच्छिमा मारणंतिया-संलेहणाझूसणाराहणया ।
६२. एअस्स पुणो समणोवासगधम्मस्स मूलवत्युं सम्मत्तं ।
सम्यक्त्व के अतिचार
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६३. आणंदाइ ! समणे भगवं महावीरे आणंद समणोवासगं एवं बयासी एवं खलु आणंदा! समणोवासरणं अभिगयजीवाजीवेणं.. अभिगयजीवाजीवेणं...पंच अतियारा पेयाला जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं
जहा
२. प्रमादाचरित -प्रमादपूर्ण प्रवृत्ति ।
३. हिंस्रप्रदान- शस्त्र देना ।
४. पापकर्मोपदेश - हिंसा का प्रशिक्षण देना ।
सामायिक का अर्थ है - सावद्य प्रवृत्ति का वर्जन करना और निरवद्य प्रवृत्ति का आसेवन करना । आनंद सामायिक व्रत को स्वीकार करता है।
खण्ड-१
दिशाव्रत में दिशा में जाने का जो परिमाण किया है, उसका प्रतिदिन संकोच करना देशावकाशिक व्रत है। आनंद देशावकाशिक व्रत को स्वीकार करता है।
पौषधोपवास व्रत के चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं
१. आहार का पौषध
२. शरीर सत्कार का पौषध
३. ब्रह्मचर्य पौषध
४. प्रवृत्ति - वर्जन रूप पौषध ।
आनंद पौषधोपवास व्रत को स्वीकार करता है।
श्रमणोपासक व्रत के अतिचार
यथासंविभाग (अतिथि संविभाग) का अर्थ है संयमी मुनि को आत्मानुग्रह की बुद्धि से कल्पनीय आहार, पानी आदि द्रव्य देना। आनंद यथासंविभाग व्रत को स्वीकार करता है।
मारणांतिक संलेखना की आराधना ।
इस श्रमणोपासक धर्म का मूल तत्त्व है - सम्यक्त्व ।
श्रमण भगवान महावीर ने आनंद को संबोधन कर कहा - आनंद! जीव अजीव को जानने वाले श्रमणोपासक को सम्यक्त्व उपलब्ध होता है उसके पांच अतिचार ज्ञातव्य हैं, आचरणीय नहीं है
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