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________________ प्रायोगिक दर्शन ४६५ अ. ४ : सम्यक्चारित्र (अ) ....नन्नत्थ मट्टकण्णेज्जएहिं नाममुहाए य, (अ) आभरणविधि-कानों के कुंडल और नामांकित अवसेसं सव्वं आभरणविहिं पच्चक्खाइ। मुद्रिका को छोड़कर शेष सब आभरणों का प्रत्याख्यान करता है। (ट) ....नन्नत्थ अगरु-तुरुक्क-धूवमादिएहिं, (ट) धूपनविधि-अगरू, तुरुक्क के अतिरिक्त शेष अवसेसं सव्वं धूवणविहिं पच्चक्खाइ। सब धूपन खेने का प्रत्याख्यान करता है। .....भोयणविहिपरिमाण करेमाणे भोजनविधि का परिमाण(क) ....नन्नत्थ एगाए कट्टपेज्जाए, अवसेसं (क) काष्ठपेय-मूंग आदि के जूस को छोड़कर शेष सव्वं पेज्जविहिं पच्चक्खाइ। पेय का प्रत्याख्यान करता है। (ख) ....नन्नत्थ एगेहिं घयपुण्णेहिं खंडखज्जएहिं (ख) घेवर और खंडखाद्य (पेठा आदि) को छोड़कर वा, अवसेसं सव्वं भक्खविहिं पच्चक्खाइ। शेष भक्ष्य का प्रत्याख्यान करता है। (ग) ....नन्नत्थ कलमसालिओदणेणं, अवसेसं (ग) कलमी चावल को छोड़कर शेष सब ओदन का सव्वं ओदणविहिंपच्चक्खाइ। . प्रत्याख्यान करता है। (घ) ....नन्नत्थ कलायसूत्रेण वा मुग्गसूवेण वा (घ) मसूर का सूप, मूंग का सूप और उड़द का सूप माससूवेण वा, अवसेसं सव्वं सूवविहिं इनको छोड़कर शेष सब सूप प्रकारों का प्रत्याख्यान पच्चक्खाइ। करता है। (ड) ....नन्नत्थ सारदिएणं गोघयमंडेण, अवसेसं (ड) शरद ऋतु के गोघृत को छोड़कर शेष सब घृतों सव्वं घयविहिं पच्चक्खाइ। . का प्रत्याख्यान करता है। (च) ....नन्नत्थ वत्थुसाएण वा तुंबसाएण वा (च) बथुआ, घीया, शितिवार (सुत्थिय) और सुत्थियसाएण वा मंडुक्कियसाएण वा, अवसेसं मंडूकपर्णी (ब्राह्मी) को छोड़कर शेष सब शाकों का सव्वं सागविहिं पच्चक्खाइ। प्रत्याख्यान करता है। .. (छ) ....नन्नत्थ एगेणं पालंकामाहुरएणं, अक्सेसं (छ) पालक के अतिरिक्त शेष सब मधुरक का सव्वं माहुरयविहिं पच्चक्खाइ। प्रत्याख्यान करता है। (ज) ....नन्नत्थ सेहंबदालियबेहिं, अवसेसं सव्वं (ज) दही-बड़े और कांजी, बड़े के अतिरिक्त अन्य ...तेमणविहिं पच्चक्खाइ। तेमन (व्यंजन) का प्रत्याख्यान करता है। (झ) ....नन्नत्थ एगेणं अंतलिक्खोदएणं, अवसेसं (झ) वर्षा के पानी को छोड़कर शेष सब पानी का सव्वं पाणियविहिं पच्चक्खाइ। प्रत्याख्यान करता है। (अ) ....नन्नत्थ पंच सोगंधिएण' तंबोलेणं, अव- (अ) पंच सुगंधि युक्त तंबोल को छोड़कर शेष सब सेसं सव्वं मुहवासविहिं पच्चक्खाइ। मुखवास का प्रत्याख्यान करता है। अनर्थदंडविरमण व्रत ५६.चउन्विहं अणट्ठादंड पच्चक्खाइ. तं जहा वह चार प्रकार के अनर्थदंड का प्रत्याख्यान करता १. अवज्झाणाचरितं। १. अपध्यानाचरित-आर्त-ध्यान, रौद्र-ध्यानयुक्त प्रवृत्ति। १. इलायची, लवंग, कपूर, कंकोल और जेवंतरी। २.कर्तव्यनिर्वाह, अर्थ और काम के अतिरिक्त निष्प्रयोजन की जाने वाली हिंसा अनर्थदंड कहलाती है।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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