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________________ आत्मा का दर्शन ४६४ खण्ड-४ (घ) ....सगडविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ पंचहिं (घ) बैलगाड़ी का परिमाण करता है-पांच सौ सगडसएहिं दिसायत्तिएहिं, पंचहिं सगडसएहिं दिशायात्रिक (यातायात के काम आने वाले) शकट एवं संवहणिएहिं, अवसेसं सव्वं सगडविहिं। पांच सौ भार ढोने के काम आने वाले शकटों को छोड़कर पच्चक्खाइ। शेष सबका प्रत्याख्यान करता है। . (ड) ....वाहणविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ चउहिं (ड) चार दिशायात्रिक वाहन और चार भार ढोने वाहणेहिं दिसायत्तिएहिं, चउहिं वाहणेहिं वाले वाहनों को छोड़कर शेष सब वाहनों का प्रत्याख्यान संवहणिएहिं, अवसेसं सव्वं वाहणविहिं करता है। पच्चक्खाइ। दिखत ५४. दिसिवए तिविहे पण्णत्ते-उड्ढदिसिविसए, अहोदिसिविसए, तिरियदिसिविसए। दिव्रत के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं-ऊर्ध्वदिव्रत, अधोदिखत, तिर्यकदिखत। आनंद इन तीनों दिशाओं में जाने का परिमाण करता है। उपभोग-परिभोगपरिमाणव्रत ५५.....उवभोग-परिभोगविहिं पच्चक्खायमाणे (क) नन्नत्थ एगाए गंधकासाईए अवसेसं सव्वं उल्लणियाविहिं पच्चक्खाइ। (ख) .......नन्नत्थ एगेणं अल्ललट्ठीमहुएणं, अवसेसं सव्वं दंतवणविहिं पच्चक्खाइ। (ग) ......नन्नत्थ एगेणं खीरामलएणं, अवसेसं सव्वं फलविहिं पच्चक्खाइ। . (घ) ....नन्नत्थ सयपागसहस्सपागेहिं तेल्लेहिं, अवसेसं सव्वं अन्भंगणविहिं पच्चक्खाइ। (ड) ......नन्नत्थ एगेणं सुरभिणा गंधट्टएणं, अवसेसं सव्वं उव्वट्टणाविहिं पच्चक्खाइ। (च) ....नन्नत्थ अट्ठहिं उटिएहिं उदगस्स घडेहिं, अवसेसं सव्वं मज्जणविहिं पच्चक्खाइ। (छ) ....नन्नत्थ एगेणं खोमजुयलेणं, अवसेसं सव्वं वत्थविहिं पच्चक्खाइ। आनंद अपने व्यक्तिगत उपभोग-परिभोग के प्रकारों का प्रत्याख्यान करता है (क) उल्लणियाविधि-एक गंधकाषायिक (अंगोछे) को छोड़कर शेष सबका प्रत्याख्यान करता है। (ख) दंतवनविधि-एक हरी मुलेठी की लकड़ी को छोड़कर शेष सब दतौन का प्रत्याख्यान करता है। (ग) फलविधि-मधुर आंवले को छोड़कर शेष सब फल प्रकारों का स्नान के लिए काम में लेने का प्रत्याख्यान करता है। (घ) अभ्यंगनविधि-शतपाक, 'सहस्रपाक तैल को छोड़कर शेष सब अभ्यंग तैलों का प्रत्याख्यान करता है। (ड) उद्वर्तनविधि-सुरभित गंधचूर्ण को छोड़कर शेष सब उबटन का प्रत्याख्यान करता है। (च) मज्जनविधि-जल के आठ घड़ों को छोड़कर अतिरिक्त जल से स्नान करने का प्रत्याख्यान करता है। (छ) वस्त्रविधि-एक सूती वस्त्र का जोड़ा (उत्तरीय और अधोवस्त्र) को छोड़कर शेष सब वस्त्रों का प्रत्याख्यान करता है। (ज) विलेपनविधि-अगरू, कुंकुम और चन्दन के अतिरिक्त शेष सब विलेपनों का प्रत्याख्यान करता है। (झ) पुष्पविधि-एक शुद्ध पद्म और मालती के फूलों की माला को छोड़कर शेष सब फूलों का प्रत्याख्यान करता है। (ज) ....नन्नत्थ अगरु-कुंकुम-चंदणमादिएहिं, अवसेसं सव्वं विलेवणविहिं पच्चक्खाइ। (झ) ....नन्नत्थ एगेणं सुद्धपउमेणं मालइकुसुमदामेण वा, अवसेसं सव्वं पुप्फविहिं पच्चक्खाइ।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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