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________________ प्रायोगिक दर्शन ४६३ श्रमणोपासक के व्रत अहिंसा अणुव्रत ४९. तए णं से आणंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए तप्पढमयाए थूलयं पाणाइवायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं-न करेमि न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा । सत्य अणुव्रत ५०..... थूलयं मुसावायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं-न करेमि न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा । अचौर्य अणुव्रत ५१..... थूलयं अदिण्णादाणं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं-न करेमि न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा । स्वदार संतोष अणुव्रत ५२.....सदारसंतोसीए परिमाणं करेइ- नन्नत्थ एक्काए सिवनंदाए भारियाए अवसेसं सव्वं मेहुणविहिं पच्चक्खाइ । इच्छापरिमाण अणुव्रत ५३..... इच्छापरिमाणं करेमाणे (क) हिरण्णसुवण्णविहिपरिमाणं करेइ - नन्नत्थ चउहिं हिरण्णकोडीहिं निहाणपउत्ताहिं, चउहिं वढि उत्ताहिं, चउहिं पवित्थर - पउत्ताहिं, अवसेसं सव्वं हिरण्णसुवण्णविहिं पच्चक्खाइ । (ख) ...चउप्पयविहिपरिमाणं करेइ- नन्नत्थ चउहिं वहिं दसगोसाहस्सिएणं वएणं, अवसेसं सव्वं चउप्पयविहिं पच्चक्खाइ । (ग) ... खेत्तवत्थुविहिपरिमाणं करेइ- नन्नत्थ पंचहिं हलसएहिं नियत्तण' - सतिएणं अवसेसं सव्वं खेत्तवत्थुविहिं पच्चक्खाइ । हलेणं, अ. ४ : सम्यक्चारित्र गृहपति आनंद श्रमण भगवान महावीर के पास सर्वप्रथम आजीवन स्थूल (संकल्प - पूर्वक) प्राणवध करने का प्रत्याख्यान करता है। उसका स्वरूप स्वयं नहीं करूंगा, दूसरे से नहीं कराऊंगा, मनसा, वाचा, कर्मणा । दूसरे व्रत में वह आजीवन स्थूल (संकल्पूर्वक) असत्य बोलने का प्रत्याख्यान करता है। उसका स्वरूपस्वयं नहीं बोलूंगा, दूसरों से नहीं बुलाऊंगा, मनसा, वाचा, कर्मणा । तीसरे व्रत में वह आजीवन स्थूल (संकल्पपूर्वक) अदत्त वस्तु के ग्रहण का प्रत्याख्यान करता है। उसका स्वरूप - स्वयं ग्रहण नहीं करूंगा, दूसरों से ग्रहण नहीं कराऊंगा, मनसा, वाचा, कर्मणा । चतुर्थ व्रत में वह अपनी पत्नी के सिवाय अन्य किसी के साथ मैथुन सेवन करने का प्रत्याख्यान करता है। पांचवें व्रत में वह इच्छाओं का परिमाण करता है। (क) हिरण्य - सुवर्ण विधि का परिमाण करता है - चार करोड़ हिरण्यं (मुद्राएं) खजाने में, चार करोड़ हिरण्य ब्याज में, चार करोड़ हिरण्य कृषिव्यवसाय में प्रयुक्त करने के सिवाय शेष सब हिरण्य और सुवर्ण का प्रत्याख्यान करता है। (ख) चतुष्पद - गौ आदि पशुओं का परिमाण करता है - दस-दस हजार गायों का एक व्रज, ऐसे चार ब्रजों को छोड़कर शेष सब पशुओं को रखने का प्रत्याख्यान करता है। (ग) क्षेत्र (खेत की भूमि, खुली भूमि), वास्तु (घर) आदि का परिमाण करता है - सौ निवर्तन का एक हल, ऐसे पांच सौ हलों के अतिरिक्त शेष क्षेत्र और वास्तु का प्रत्याख्यान करता है। १. निवर्तन-चार बद्धमुष्टि हाथ का एक दंड, दस दंड का एक रज्जु और तीन रज्जु का एक निवर्तन होता है।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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