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प्रायोगिक दर्शन
मुनि के लिए अवश्य करणीय प्रयोग
११. दसविधे समणधम्मे पण्णत्ते, तं जहा
खंती
मुत्ती
अज्जवे
महवे
लाघवे
सच्चे
संजमे
तवे
चियाए
भरवासे ।
नियम
१२. अणारंभा
अपरिग्गहा
इरिवासमिए
भासासमिए
सणासमिए
आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए
उच्चार- पासवण खेल-सिंघाण जल्ल-पारिट्ठा
वणिवासमिए
मणसमिए
वइसमिए
कायसमिए
मणगुत्ते
वइगुत्ते
कायगुत्ते
चाई
लज्जू
धन्ने
४५३
खंतिखमे
जिइदिए
सोहिए
अनियाणे
श्रमणों के लिए अवश्य करणीय धर्म के दस प्रयोगक्षांति-क्षमा, सहिष्णुता ।
मुक्ति- अलोभ, अनासक्ति ।
आर्जव - ऋजुता, अविसंवाद ।
अ. ४ : सम्यक् चारित्र
मार्दव - मृदुता, आठ प्रकार के मद का निग्रह |
लाघव - आकिंचन्य, शरीर आदि के प्रति निर्ममत्व । सत्य - निरवद्य भाषण |
संयम - मन, वचन एवं शरीर के योग का निग्रह । तप - द्वादशविध तप ।
त्याग–व्युत्सर्ग, संविभाग ।
ब्रह्मचर्यवास- गुरुकुलवास ।
आरंभ (हिंसा) न करने वाला ।
संग्रह न रखने वाला ।
जागरूक दृष्टि से मार्ग को देखकर चलने वाला । विवेकपूर्वक निरवद्य वचन बोलने वाला । विवेकपूर्वक आहार करने वाला | विवेकपूर्वक वस्त्र आदि को उठाने वाला । विवेकपूर्वक उत्सर्ग आदि करने वाला ।
संयमपूर्वक मन की प्रवृत्ति करने वाला | संयमपूर्वक वचन की प्रवृत्ति करने वाला | संयमपूर्वक काया की प्रवृत्ति करने वाला । मन का निरोध करने वाला।
वचन का निरोध करने वाला । काया का निरोध करने वाला।
सहिष्णु
लज्जावान्—–आत्मानुशासी ।
कृतार्थ - संयम की साधना में सफलता का अनुभव
करने वाला
समर्थ होने पर भी क्षमाशील ।
इन्द्रियजयी ।
ऋजु और निर्मल चित्त वाला |
पौद्गलिक सुखों की प्राप्ति के लिए संकल्प नहीं करने
वाला।