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आत्मा का दर्शन
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खण्ड-१
मृगापुत्र आह
सो बिंतम्मापियरो! एवमेयं जहाफुडं। पडिकम्मं को कुणई अरण्णे मियपक्खिणं?
माता-पिता! आपने जो कहा वह ठीक है। किन्त जंगल में रहने वाले पशु-पक्षियों की चिकित्सा कौन करता
ह
एगभूओ अरण्णे वा जहा उ चरई मिगो। एवं धम्मं चरिस्सामि संजमेण तवेण य॥ जया मिगस्स आयंको महारण्णम्मि जायई। अच्छंतं रुक्खमूलम्मि को णं ताहे तिगिच्छई?
को वा से ओसहं देई? को वा से पुच्छई सुहं? को से भत्तं च पाणं च आहरित्त पणामए?
जैसे जंगल में पशु अकेला विचरता है, वैसे मैं भी संयम और तप के द्वारा धर्म आचरण करूंगा।
जब महारण्य में पशु के शरीर में आतंक-रोग उत्पन्न होता है, तब वह किसी वृक्ष के पास बैठ जाता है। उसकी चिकित्सा कौन करता है?
कौन उसे औषधि देता है? कौन उससे सुख प्रश्न करता है? कौन उसे खाने-पाने को भोजन-पानी लाकर देता है?
जब वह स्वस्थ हो जाता, तब खाने-पीने के लिए चरागाह में जाता है, लतानिकुंचों और जलाशयों में जाता
जया य से सुही होइ तया गच्छइ गोयरं। भत्तपाणस्स अट्ठाए वल्लराणि सराणि य॥
लतानिकुंजों और जलाशयों में वह खा-पीकर घूमने लग जाता है।
खाइत्ता पाणियं पाउं वल्लरेहिं सरेहि वा। मिगचारियं चरित्ताणं गच्छई मिगचारियं॥ माता-पिता आहमिगचारियं चरिस्सामि एवं पुत्ता! जहासुहं। अम्मापिऊहिंऽणुण्णाओ जहाइ उवहिं तओ॥
इड्ढि वित्तं च मित्ते य पुत्तदारं च नायओ। रेणुयं व पडे लग्गं निश्रुणित्ताण निग्गओ॥ पंचमहव्वयजुत्तो पंचसमिओ तिगुत्तिगुत्तो य। सभिंतरबाहिरओ तवोकम्मंसि उज्जओ॥
निम्ममो निरहंकारो निस्संगो चत्तगारखो। समो य सव्वभूएसु तसेसु थावरेसु य॥
मैं मृग-चर्या का आचरण करूंगा। 'पुत्र! जैसा तुम्हें सुख हो वैसा करो।' माता-पिता की अनुमति पाकर वह उपधि-परिग्रह को छोड़ देता है।
ऋद्धि, धन, मित्र, पत्नी और ज्ञातिजनों को कपड़े पर लगी धूलि की भांति झटकाकर वह मुनि बन गया।
वह पांच महाव्रतों से युक्त, पांच समितियों से समित, तीन गुप्तियों से गुप्त, आंतरिक और बाहरी तपस्या में तत्पर हो गया। . ___ ममता और अहंकार से रहित, असंग (अनासक्त), गर्वमुक्त, त्रस एवं स्थावर सभी जीवों में समभाव रखने वाला बन गया।
वह लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, निन्दाप्रशंसा, मान-अपमान-इन द्वन्द्वों में सम हो गया।
वह गर्व, कषाय, दण्ड, शल्य, भय, हास्य और शोक से निवृत्त, निदान और बंधन से रहित हो गया।
वह इहलोक-परलोक में अनिश्रित-अप्रतिबद्ध, वसूले से काटने व चंदन लगाने तथा आहार मिलने या न मिलने की स्थिति में सम रहता।
लाभालाभे सुहे दुक्खे जीविए मरणे तहा। समो निंदापसंसासु तहा माणावमाणओ॥ गारवेसु कसाएसु दण्डसल्लभएसु या नियत्तो हाससोगाओ अनियाणो अबंधणो॥ अणिस्सिओ इहं लोए परलोए अणिस्सिओ। वासीचंदणकप्पो य असणे अणसणे तहा॥