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________________ आत्मा का दर्शन ४४० खण्ड-१ तए णं मदुए समणोवासए इमीसे कहाए लद्धठे मदुक श्रमणोपासक ने भगवान महावीर के आगमन की सूचना सुनी। वह हृष्ट और तुष्ट हुआ। उसका चित्त गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता प्रसन्नता से भर गया। वह भगवान को वन्दन करने के पादविहारचारेणं रायगिह नगरं मज्झमज्झेणं लिए घर से निकला। अन्यतीर्थिकों के चैत्य के निकट से निग्गच्छति, निग्गच्छित्ता तेसिं अण्णउत्थियाणं गुजरा। अदूरसामंतेणं वीईवयइ। तए णं ते अण्णउत्थिया मदुयं समणोवासयं अन्यतीर्थिकों ने मदुक श्रमणोपासक को अपने अदूरसामंतेणं वीईवयमाणं पासंति, पासित्ता निकट से जाते देख परस्पर वार्तालाप किया-हम अपने अण्णमण्णं सहावेंति, सहावेत्ता एवं वयासी-एवं इस उलझन भरे प्रश्न को मदुक से पूछे। इस प्रस्ताव पर खलु देवाणुप्पिया! अम्हं इमा कहा अविप्पकडा, सब सहमत हुए। वे मदुक के पास आए। बोले-मदुक! इमं च णं मदुए समणोवासए अम्हं अदूरसामंतेणं तुम्हारे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्र महावीर वीईवयइ, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं मदुयं पांच अस्तिकाय का प्रतिपादन करते हैं, यह कैसे? ... समणोवासयं एयमढें पुच्छित्तएत्ति कटु अण्णमण्णस्स अंतियं एयमठें पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जेणेव मद्दए समणोवासए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मदुयं समणोवासयं एवं वदासी-एवं खलु मदुया! तव धम्मायरिए धम्मोवदेसए समणे नायपुत्ते पंच अस्थिकाए पण्णवेइ।....... से कहमेयं मया ! एवं? . तए णं से मदुए समणोवासए ते अण्णउत्थिए एवं मद्दुक ने उनसे कहा यदि कार्य हो रहा है, हम वयासी-जति कज्जं कज्जति जाणामो-पासामो, जानते-देखते हैं। यदि कार्य नहीं हो रहा है, हम नहीं अहे कज्ज न कज्जति न जाणामो न पासामो। जानते-देखते हैं। तए णं ते अण्णउत्थिया मदुयं समणोवासयं एवं अन्यतीर्थिकों ने मदुक श्रमणोपासक से कहा-तुम वयासी-केस णं तुम मद्या! समणोवासगाणं कैसे श्रमणोपासक हो जो इस अर्थ को नहीं जानते-देखते भवसि, जे णं तुम एयमळं न जाणसि न पाससि? हो? तए णं से मदुए समणोवासए ते अण्णउत्थिए एवं मद्दुक श्रमणोपासक ने अन्यतीर्थिकों से कहावयासी-अत्थि णं आउसो! वाउयाए वाति? आयुष्मन्! हवा चल रही है? हंता अत्थि। हां, चल रही है। तुब्भे णं आउसो! वाउयायस्स वायमाणस्स रूवं आयुष्मन् ! आप चलती हुई हवा का रूप देख रहे हैं? पासह? नो इणढे समठे। नहीं। अत्थि णं आउसो! घाणसहगया पोग्गला? आयुष्मन्! नाक में गंधयुक्त पुद्गल प्रविष्ट होते हैं? हंता अत्थि। हां, होते हैं। तुब्भे णं आउसो! घाणसहगयाणं पोग्गलाणं रूवं आयुष्मन्! आप नाक में प्रविष्ट गंधयुक्त पुद्गलों पासह? का रूप देखते हैं? नो इणठे समठे। अत्थि णं आउसो! अरणिसहगए अगणिकाए? आयुष्मन्! अरणि में अग्नि होती है? ' नहीं।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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