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________________ आत्मा का दर्शन ४६. लेहं लिवीविहाणं जिणेण बंभीए दाहिणकरेणं । भणियं संखाणं सुंदरीए वामेण उवइछं | ४७. भरहस्स रूवकम्मं नराइलक्खण महोइयं बलिणो । माम्माणवमाणप्पमाणगणिमाइ वत्थूणं ॥ ४८. मणियाई दोराइसु पोता तह सागरंमि वहणाई । ववहारो लेहवणं कज्जपरिच्छेयणत्थं वा ॥ ४९. नीई हक्काराई सत्तविहा अहव सामभेयाई । जुखाई बाहुजुदाइयाइं वट्टाइयाणं च ॥ ५०. ईसत्थं धणुवेदो उवासणा मंसुकम्ममाईया | गुरुरायाईणं वा उवासणा पज्जुवासणया ॥ ५१. रोगहरणं चिकिच्छा अत्थागम - सत्थमत्थसत्थत्ति । घातो दंडादितालणया ॥ ५२. मारणया जीववहो जन्ना नागाइयाण पूयातो । इंदा महा पायं पइनियया ऊसवा होंति ॥ निगडाइजमो बन्धो ५३. समवाओ गोट्ठीणं गामाईणं व संपसारो वा । तह मंगलाई सोत्थियसुवण्णसिद्धत्थगाईणि ॥ ५४. पुव्वं कयाइं पहुणोसुरेहिं रक्खादि कोउयाई च। वत्थगंधमल्लालंकारा- केसभूसाई ॥ तह ३० खण्ड - १ ऋषभ ने अपनी ज्येष्ठपुत्री ब्राह्मी को दाएं हाथ - दायीं ओर से लिपि विन्यास करना सिखाया । कनिष्ठपुत्री सुन्दरी को बाएं हाथ - बायीं ओर से गणित सिखाई । भरत को चित्रकला, बाहुबली को स्त्री-पुरुष के लक्षण तथा वस्तु के मान, उन्मान, अवमान, प्रमाण, संख्यान आदि का प्रशिक्षण दिया। धागे में मणि आदि पिरोने की कला, जलपोत निर्माण और वाहन, व्यवहार - दंडविधान, कार्य परिच्छेद के लिए लिखित प्रमाण- इन सबका प्रवर्तन किया । हाकार, माकार, धिक्कार, परिभाषित-अल्पकालीन कारावास, मंडलिबंध-सीमा से बाहर जाने का निषेध, गृहबंध, दंडप्रहार अथवा चार प्रकार की नीतियां - साम, दाम, दंड और भेद, बाहुयुद्ध आदि युद्ध - इन सबका प्रवर्तन किया । बाण अस्त्र, धनुर्वेद और दाड़ी-मूंछ आदि कटाना, पर्युपासना - गुरु, राजा आदि की उपासना करना - इन सबका प्रवर्तन किया। रोगहरण के लिए चिकित्साशास्त्र, अर्थार्जन के लिए अर्थशास्त्र, बंध-निगड़ आदि से बांधना, घात-दंड आदि से ताड़ना देना- इन सबका प्रवर्तन हुआ । मारण- जीववध, यज्ञ - नाग आदि की पूजा, प्रतिनियत समय पर होने वाले इन्द्र आदि महोत्सव - इन सबका प्रवर्तन हुआ । समवाय-गोष्ठियों का मिलन, संप्रसार-ग्राम आदि का विस्तार, मंगल- स्वस्तिक, स्वर्ण, सर्षप आदि भी उसी समय प्रवर्तित हुए। देवों ने ऋषभ के रक्षा आदि कौतुक कर्म किए। वस्त्र, गंध, माल्य, अलंकार आदि धारण करवाए। केश विन्यास किया।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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