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________________ उद्भव और विकास २९ अ. ३ : आदिम युग : अर्हत् ऋषभ से मर्दन कर खाने के लिए कहा। ४०.आसी य पाणिघंसी तिम्मिय तंदुलपवालपुडभोई। हत्थयलपुडाहारा जइया किर कुलगरो उसभो॥ कुछ समय के बाद मर्दन कर खाया जाने वाला धान्य जीर्ण नहीं होता था। ऋषभ ने उन्हें चावल आदि सब प्रकार के धान्यों को भिगोकर खाने का निर्देश दिया। जब वह भी दुष्प्राच्य हो गया तो भिगोये हुए धान्य को मुहूर्त भर हाथ में रखकर खाने की बात कही। ४१........कक्ख सेए य। जब भिगोया हुआ धान्य हाथ में रखकर खाने पर भी दुष्पाच्य हो गया तो उसे कक्षा की उष्मा में रखकर खाने की बात कही। ४२.अगणिस्स य उठाणं वणसंघा दलु भीय परिकहणं। पासेसुं परिछिंदह गेण्हह पागं ततो कुणह॥ एकांत स्निग्ध और एकांत रूक्ष काल में अग्नि की उत्पत्ति नहीं होती। एकांत स्निग्ध काल के बीत जाने पर वृक्षों के घर्षण से एक दिन अग्नि की उत्पत्ति हुई। लोग उसे देख भयभीत हो गए और ऋषभ को उसकी सूचना दी। ऋषभ ने उन्हें आस-पास के घासपात को काटकर अग्नि में धान्य पकाने का निर्देश दिया। १३.पक्खेवडहणमोसहि कहणं निम्गमण हत्थिसीसम्मि। पयणारंभपवित्ती . ताहे कासी य ते मणुया॥ . अग्नि में डाला गया धान्य जल गया। वे ऋषभ के पास आए और सारी बात बताई। ऋषभ हाथी पर आरूढ़ हो उन सबको साथ ले नगर के बाहर आए। मिट्टी का पिंड लिया। हाथी के कुम्भ पर एक बर्तन बनाया, कहा-इस प्रकार बर्तन बनाओ और धान्य बर्तन में पकाकर खाओ। तब से पाकविद्या का प्रारंभ हुआ। ४४.पंचेव य सिप्पाइं घड लोहे चित्तऽणंत कासवए। एक्केक्कस्स य एसो वीसं वीसं भवे भेया॥ अग्नि का आविष्कार होने के बाद पांच प्रकार के शिल्प-कुंभकार शिल्प, लोहकार शिल्प, चित्रकार शिल्प, सौचिक शिल्प (जुलाहा) और नापित शिल्प का प्रवर्तन हुआ। प्रत्येक शिल्प की बीस-बीस विधाओं का विकास हो गया। मामणा जा ४५. कम्म किसिवाणिज्जाइ मामणा जा परिग्गहे ममता। __ पुव्वं देवेहिं कया विभूसणा मंडणा गुरुणो॥ __ कृषि, वाणिज्य आदि कर्म का प्रवर्तन हुआ। कुटुम्ब एवं पदार्थ संग्रह के प्रति ममत्व का विस्तार हुआ। देवों ने ऋषभ के शरीर को विभूषित एवं परिमंडित किया। फलतः सौंदर्य कला विकसित हुई।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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