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आत्मा का दर्शन
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खण्ड-१
सहस्साइं कुमारवासमझावसइ, अज्झावसित्ता तेवदिळं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झावसइ, तेवढिं पुव्वसयसहस्साई महारायवासमज्झावसमाणे लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावत्तरिं कलाओ, चोसदिठं महिलागुणे सिप्पसयं च कम्माणं तिण्णि वि पयाहियाए उवदिसइ।
में रहे। ६३ लाख पूर्व वर्षों तक राज्य का संचालन किया। ६३ लाख पूर्व वर्षों की अवधि में ऋषभ ने प्रजाहित के लिए लिपिविधान, गणित और पक्षीशब्दविज्ञान पर्यंत पुरुषोचित ७२ कलाओं, स्त्रीजनोचित.६४ कलाओं और व्यवसायोचित १०० शिल्पों-इन तीनों का प्रवर्तन किया।
३६. तेणं कालेणं तेणं समएणं उसमे अरहा अर्हत ऋषभ तेयासी लाख पूर्व वर्ष तक गृहस्थ
कोसलिए........., तेसीई पुव्वसयसहस्साई अगार- अवस्था में रहे। एक हजार वर्ष तक छद्मस्थ 'संयम' वासमज्झाव-सित्ताणं, एगं वाससहस्सं छउमत्थ- पर्याय में रहे। एक हजार वर्ष न्यून-एक लाख पूर्व तक परियागं पाउ-णित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं वास- केवली अवस्था में रहे। श्रमण पर्याय एक लाख वर्ष का सहस्सूणं केवलि-परियागं पाउणित्ता, पडिपुण्णं रहा। चोरासी लाख पूर्व का पूर्ण आयुष्य भोगकर इसी पुव्वसय-सहस्सं सामण्ण-परियागं पाउणित्ता, अवसर्पिणी काल के सुषम-दुःषमा नाम के तीसरे अर के चउरासीइं पुव्वसय-सहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता बहुत समय बीत जाने पर तथा साढे आठ मास शेष रहने खीणे वेयणिज्जा-उयनामगोत्ते इमीसे ओसप्पिणीए पर हेमन्त ऋतु के तीसरे मास, पांचवें पक्ष-माह कृष्णा सुसम-दूसमाए समाए बहु-विइक्कंताए तिहिं वासे- त्रयोदशी के दिन, अष्टापद पर्वत के शिखर पर अर्हत् हिं अक्षणवमेहि य मासेहिं सेसेहिं जे से हेमंताणं ऋषभ अन्य दस हजार मुनियों के साथ चतुर्दश भक्त तच्चे मासे पंचमे पक्खे-माहबहले तस्स णं 'छह का तपस्या' का चौविहार तप करते हुए, अभिजित माहबहुलस्स तेरसी-पक्खेणं उप्पिं अट्ठावय- नक्षत्र का योग प्राप्त कर पूर्वार्द्ध में पर्यकासन में वेदनीय सेल-सिहरंसि दसहिं अणगार-सहस्सेहिं सद्धिं कर्म, आयुष्य कर्म, नाम कर्म, गोत्र कर्म क्षीण होते ही चोइसमेणं भत्तेणं अपाणएणं अभीइणा नक्खत्तेणं । कालगत हुए यावत् सब दुःखों से मुक्त हुए, निर्वाण प्राप्त जोगमुवागएणं पुव्वण्हकाल-समयंसि पलियंक- किया। निसन्ने कालगए विइक्कंते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे॥
३७.आसी य कंदहारा मूलाहारा य पत्तहारा य।
पुप्फफलभोइणोऽवि य जइया किर कलगरो उसभो॥
ऋषभ के प्रारंभिक समय तक मनुष्य कंद, मूल, पत्र, फल और फल का आहार करते थे।
३८.आसी य इक्खुभोई इक्खागा तेण खत्तिया होति।
सणसत्तरसं धन्नं आमं ओमं च भंजीया॥
इक्षु का भोजन करने के कारण क्षत्रिय इक्ष्वाकु कहलाए। उस समय के लोग सण प्रमुख सतरह प्रकार के धान्य का भोजन करते थे। वे कच्चा धान्य खाते और बहुत कम मात्रा में खाते।
३९.ओमंऽपाहारेता अजीरमाणंमि ते जिणमुवेति।
हत्थेहिं घंसिऊणं आहारेहत्ति ते भणिया॥
कम मात्रा में किया गया भोजन भी कच्चा होने के कारण जीर्ण नहीं होता था-पचता नहीं था। इस समस्या को लेकर लोग ऋषभ के पास आए। ऋषभ ने उन्हें हाथों