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उद्भव और विकास
परिग्गाणं ते मणुया पण्णत्ता, समणाउसो!
अ. ३ : आदिम युग : अर्हत् ऋषभ देवलोक में उत्पन्न होते हैं। वे मनुष्य निश्चित रूप से देवलोकगामी होते हैं, आयुष्मन् श्रमण!
कुलकर व्यवस्था : अर्हत् ऋषभ ३०.तीसे णं समाए पच्छिमे तिभाए पलिओवमठभागावसेसे, एत्थ णं इमे पण्णरस कुलगरा समुप्पज्जित्था, तं जहा सम्मुती पडिस्सुई सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे, खेमंधरे विमलवाहणे चक्खुमं जसमं अभिचदे चंदाभे पसेणई मरुदेवे णाभी उसमे ।
अवसर्पिणी कालचक्र का तीसरा अर। उसके अंतिम तीसरे भाग के एक पल्योपम का आठवां भाग, इतना समय शेष रहा तब पंद्रह कुलकर उत्पन्न हुए
१. स्मृति २. प्रतिश्रुति ३. सीमंकर ४. सीमंधर ५. खेमंकर ६. खेमंधर ७. विमलवाहन ८. चक्षुष्मान् ९. यशस्वान् १०. अभिचंद्र ११. चन्द्राभ १२. प्रसेनजित १३. मरुदेव १४. नाभि १५. ऋषभ।
त्ति।
३१.तत्थ णं सम्मुति-पडिस्सुइ-सीमंकर-सीमंधर-
खेमंकराणं-एतेसिं पंचण्हं कुलगराणं हक्कारे णामं दंडणीई होत्था। ते णं मणुया हक्कारेणं दंडेणं हया समाणा लज्जिया विलिया वेड्डा भीया तुसिणीया विणओणया चिट्ठति।
स्मृति, प्रतिश्रुति, सीमंकर, सीमंधर और खेमंकरइन पांच कुलकरों के समय में हाकार नामक दंडनीति प्रचलित थी। उस समय के मनुष्य 'हा! तू ने यह क्या किया'-इतना कहने मात्र से लज्जित, वीडित, अपमानित, भीत, मौन और नतमस्तक हो जाते।
३२.तत्थ णं खेमंधर-विमलवाहण-चक्खुम-जसम
अभिचंदाणं-एतेसिं णं पंचण्हं कुलगराणं मक्कारे जाम दंडणीई होत्था। ते णं मणुया मक्कारेणं दंडेण हया समाणा लज्जिया विलिया वेड्डा भीया तुसिणीया विणओणया चिट्ठति।
___ खेमंधर, विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशस्वान् और
अभिचन्द्र-इन पांच कुलकरों के समय में माकार नामक दंडनीति प्रचलित थी। उस समय के मनुष्य 'ऐसा मत करो'-इतना कहने मात्र से लज्जित, वीडित, अपमानित, भीत, मौन और नतमस्तक हो जाते।
३३.तत्य णं चंदाम-पसेणइ-मरुदेव-णाभि-उसभाणं चन्द्राभ, प्रसेनजित, मरुदेव, नाभि और ऋषभ इन एतेसि णं पंचण्हं कुलगराणं धिक्कारे णामं दंडणीई पांच कुलकरों के समय धिक्कार नामक दंडनीति प्रचलित होत्था। तेणं मणुया धिक्कारेणं दंडेणं हया समाणा थी। उस समय के मनुष्य 'धिक्कार है तुझे'- इतना कहने लज्जिया विलिया वेड्डा भीया तुसिणीया मात्र से लज्जित, वीडित, अपमानित, भीत, मौन और विणओणया चिळंति।
नतमस्तक हो जाते।
३४.णाभिस्स णं कुलगरस्स मरुदेवाए भारियाए
कुच्छिंसि, एत्थ णं उसहे णामं अरहा कोसलिए पढमराया पढमजिणे पढमकेवली पढमतित्थकरे पढमधम्मवरचक्कवट्टी समुप्पज्जित्था।
नाभि कुलकर की पत्नी मरुदेवा की कुक्षि से ऋषभ नाम के अर्हत् का जन्म हुआ। वे अयोध्यावासी थे। वे प्रथम राजा, प्रथम केवली, प्रथम तीर्थंकर और प्रथम धर्मचक्रवर्ती हुए।
, कर्मयुग का प्रवर्तन
३५. तए णं उसभे अरहा कोसालिए वीसं पुव्वसय-
अर्हत् ऋषभ २० लाख पूर्व वर्षों तक कुमार अवस्था