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आत्मा का दर्शन
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मयूरी - पोय एत्थ जाए।
तणं से जिणदत्तपुत्ते तं मयूरी- पोययं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठे मयूर - पोसए सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! इमं मयूरपोयगं बहूहिं मयूर-पोसण-पाओग्गेहिं दव्वेहिं अणुपुव्वेणं सारक्खमाणा संगोवेमाणा संवड्ढेह नदुल्लगं च सिक्खावेह ।
तणं ते मयूर - पोसगा जिणदत्तपुत्तस्स एयमट्ठ पडिसुणेंति, तं मयूर - पोयगं गेण्हंति, जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छंति, तं मयूर - पोयगं बहूहिं मयूर - पोसण - पाओग्गेहिं दव्वेहिं अणुपुव्वेणं सारक्खमाणा संगोवेमाणा संवड्ढेंति, नदुल्लगं च सिक्खावेंति ।
तए णं से मयूर - पोयए उम्मुक्कबालभावे...... जोव्वणगमणुपत् लक्खण- वंजण-गुणोववेए माणुम्माण- पमाणपडिपुण्णपक्ख- पेहुणकलावे विचित्तपिच्छसतचंदए नीलकंठए नच्चणसीलए एगाए चप्पुडियाए कयाए समाणीए अणेगाई नदुल्लगसयाइ केकाइयसयाणि य करेमाणे विहरs |
तए णं ते मयूर - पोसगा तं मयूर - पोयगं उम्मुक्कबालभावं जाव केकाइयसयाणि य करेमाणं पासित्ता णं तं मयूर - पोयगं गेण्हंति, गेण्हित्ता जिणदत्तपुत्तस्स उवणेंति ।
तणं से जिणदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए मयूर - पोयगं उम्मुक्कबालभावं जाव केकाइयसयाणि य करेमाणं पासित्ता हट्ठतुट्ठे तेसिं विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दल, दलइत्ता पडिविसज्जेइ ।
तए से णं मयूर - पोयगे जिणदत्तपुत्तेणं एगाए चप्पुडिया कयाए समाणीए नंगोला - भंग - सिरोधरे सेयावंगे ओयारिय-पइण्णपक्खे उक्खित्तचंदकाइयकलावे केकाइयसयाणि मुंचमाणे नच्चइ ।
तणं से जिणदत्तपुत्ते तेणं मयूर - पोयएणं चंपाए नयरीए सिंघाडग-तिग- चउक्क- चच्चर- चउम्मुहमहापहपसु सएहि य सयसहास्सिएहि य पणिएहिं
खण्ड-४
जिनदत्तपुत्र ने उस मयूरी के बच्चे को देखा। उसे देख हर्षित और संतुष्ट हो मयूर पोषकों को बुलाकर कहा- देवानुप्रियो ! इस मोर के बच्चे का पोषणयोग्य द्रव्यों से संरक्षण, संगोपन एवं संवर्द्धन करो। इसे नृत्य सिखाओ।
मयूर - पोषकों ने जिनदत्तपुत्र के अनुरोध को स्वीकार किया। मोर के बच्चे को ले अपने घर आए। पोषण योग्य द्रव्यों से उसका संरक्षण, संगोपन और संवर्द्धन करने लगे। नृत्य सिखाने लगे।
वह मोर का बच्चा शैशव को पारकर युवा हो गया। लक्षण, व्यंजन की विशेषता से युक्त, मान, उन्मान और प्रमाण से परिपूर्ण पंख और कलाप वाला हो गया। सैकड़ों चंदवा से युक्त रंग-बिरंगी पांखें आ गईं। वह नीलकंठ नृत्य में निष्णात हो गया । चुटकी बजाते ही सैकड़ों प्रकार के नृत्य और सैकड़ों प्रकार के केकारव करने लगा।
मयूरपोषकों ने उस युवा मोरं को सैकड़ों प्रकार से कारव करते देखा। वे उसे जिनदत्तपुत्र के पास लाए और उसे सौंप दिया।
जिनदत्तपुत्र उस युवा मोर को सैकड़ों प्रकार के नृत्य और केकारव करते देख हर्षित और संतुष्ट हुआ। उसने मयूरपोषकों को जीवन-निर्वाह योग्य विपुल प्रीतिदान देकर विदा किया।
जिनदत्तपुत्र के द्वारा एक चुटकी बजाते ही वह युवा मोर सिंह की पूंछ की भांति गर्दन को टेढ़ा, श्वेत पृष्ठभाग को अनावृत कर, पांखों की छतरी तानकर, चंदवायुक्त कलाप को ऊपर उठा सैकड़ों प्रकार के केकारव करता हुआ नृत्य करने लगा।
जिनदत्तपुत्र उस युवा मोर के कारण चंपानगरी के दुराहों, तिराहों, चौराहों, चौकों, चौहट्टों और राजमार्गों में सैकड़ों, हजारों और लाखों के दांव जीतता हुआ