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________________ प्रायोगिक दर्शन ४१३ अ. १: समत्व तत्थिमं गंतूण तं वज्रावेहि) उसका वर्धापन करता है, उसे वह दो माशा सोना देता है। तुम वहां जाओ और उसका वर्धापन करो। आमंति तेण भणियं। तीए लोभेण मा अण्णो कपिल ने दासी पुत्री की बात को स्वीकार किया। गच्छिहित्ति अतिपभाए पेसितो। श्रेष्ठी के पास कोई दूसरा पहले न पहुंच जाए-इस लोभ में दासी पुत्री ने अंधेरे-अंधेरे ही उसे विदा कर दिया। वच्चंतो य आरक्खियपुरिसेहिं गहितो बद्धो य। नगररक्षक घूम रहे थे। उन्होंने उसे चोर समझकर ततो पभाए पसेणइस्स रण्णो उवणीतो। पकड़ा और बंदी बना लिया। प्रातःकाल होते ही राजा प्रसेनजित के सामने नगर-रक्षकों ने उसे उपस्थित किया। राइणा पुच्छितो, तेण सब्भावो कहितो। राइणा राजा ने उसे रात्रि में अकेले घूमने का कारण पूछा। भणितो जं मग्गसि तं देमि। कपिल ने सच-सच बता दिया। उसकी सत्यवादिता से प्रसन्न हो राजा ने कहा-आज तुम जो मांगो, वही दूंगा। सो भणति-विचिंतिउं मग्गामि। ___ मैं सोचकर मांगूंगा। राइणा तहत्ति भणिए। राजा ने उसे स्वीकृति दी। असोगवणियाए चिंतेउमारद्धा-किं दोहिं मासेहिं वह अशोकवाटिका में पहुंच सोचने लगा-दो माशा साडिगाभरणे पडिवासिगा जाणवाहणा- सोने से क्या होगा? क्या इससे साड़ी, आभूषण, इत्रउज्जाणोवभोगा- मम वयस्साणं पव्वागयाण घरं फुलेल आदि द्रव्य ला सकूँगा? यान-वाहन, वाद्य आदि भज्जाचउट्ठयं जंचण्णं उवउज्जं? एवं जाव का उपयोग कर सकूँगा? उत्सव पर आए मित्रों का कोडीएवि ण ठाएति। चितितो सुहन्झवसाणो स्वागत कर सकूँगा? घर बना सकूँगा? पत्नी की मांगें संवेगमावण्णो जाइं सरिऊण सयंबुद्धो। पूरी कर सकूँगा? अन्य आवश्यक सामग्री खरीद सकूँगा? इस प्रकार अधिक मांगने का विकल्प करतेकरते वह करोड़ स्वर्ण मुद्राओं तक पहुंच गया। वहां पहुंचने पर भी उसे संतोष नहीं हुआ। सोचते-सोचते उसका चिंतन बदला। अध्यवसाय शुभ हुए। वह संवेग से भर गया। उसे जाति-स्मरण ज्ञान हुआ। वह स्वयं बुद्ध बन गया। ५४.कसिणं पि जो इमं लोयं धन धान्य से परिपूर्ण यह समूचा लोक भी यदि किसी पडिपुण्णं दलेज्ज इक्कस्स। एक व्यक्ति को दिया जाए, तब भी वह उससे संतुष्ट नहीं तेणावि से न संतुस्से होता। इतना दुष्पूर है यह आत्मा। इइ दुप्पूरए इमे आया॥ ५५.जहा लाहो तहा लोहो लाहा लोहो पवड्ढई। जैसे लाभ होता है, वैसे ही लोभ होता है। लाभ से दोमासकयं कज्ज कोडीए वि न निट्ठियं॥ लोभ बढ़ता है। दो माशा सोने से पूरा होने वाला कार्य करोड़ों से भी पूरा नहीं हुआ। इषुकार और कमलावती ५६. पुरोहियं तं ससुयं सदारं पुरोहित अपने पुत्रों और पत्नी के साथ भोगों को सोच्चाभिनिक्खम्म पहाय भोए। छोड़कर प्रव्रजित हो चुका है-यह सुन राजा इषुकार उसके ___ कुटुंबसारं विउलुत्तमं तं प्रचुर और प्रधान धन-धान्य आदि को राज्य कोष के लिए रायं अभिक्खं समुवाय देवी॥ मांगने लगा।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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