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________________ आत्मा का दर्शन ४०८ खण्ड-४ एवं य कालो वच्चति। ताए य घरिणीए अवमाणो समय की सूई अपनी गति से चल रही थी। चंदना जायति मच्छरिज्जति य। को जाणति कयाइ एस की बढ़ती हुई प्रशंसा को मूला ने अपना अपमान समझा। एतं पडिवज्जेज्जा? ताहे अहं घरस्स अस्सामिणी वह उससे ईर्ष्या करने लगी। कौन जाने कब यह श्रेष्ठी भविस्सामि। इसे अपनी पत्नी बना ले? फिर मैं घर की स्वामिनी नहीं रहूंगी। तीसे य बाला अतीव रमणिज्जाऽतिकिण्हा य। चन्दना के केश अत्यंत सुन्दर और श्याम थे। एक अन्नया कयाई सो सेट्ठी मज्झण्हे जणविरहिते दिन श्रेष्ठी धनावह मध्याह्न के समय घर आया। पैर धोने आगतो जाव णत्थि कोयि जो पादे सोचेति। ताहे के लिए जल लाने वाला कोई दूसरा नौकर नहीं था। सा पाणितं गहात निग्गता। तेण वारिया। सा चंदना जल का बर्तन लेकर श्रेष्ठी के पास आई। श्रेष्ठी ने मड्डाए पधोता। ताए धोवंतीए ते बाला वड्ढेलगा उसे रोका। वह आग्रहपूर्वक पांव धोते समय उसके लंबेफिट्टा। मा चिक्खल्ले पडिहिंतित्ति तस्स य हत्थे लंबे बाल जमीन पर फैलने लगे। श्रेष्ठी ने सोचा, कहीं ये लीलाकट्ठतं तेण ते धरिता बद्धा य। कीचड़ से न भर जाएं। इसलिए उसने अपनी क्रीडायष्टि से उन्हें ऊपर लेकर व्यवस्थित कर दिया। मूला य ओलोयणवरगता पेच्छति। ताए मूला झरोखे में बैठी यह सारा दृश्य देख रही थी। णायं-विणासितं कज्जं, जदि किहइ परिणेति तो उसने सोचा-अनर्थ हो गया। यदि श्रेष्ठी इसे पत्नी बना अहं का? सा सामिणी। वासो नगरेवि मे णत्थि। लेगा तो मेरा क्या होगा? घर की स्वामिनी यह बन जाव तरुणओ वाधी ताव णं तिगिच्छामित्ति। जायेगी। यहां तक कि मैं नगर में भी नहीं रह पाऊंगी। अच्छा हो, यह व्याधि बढ़े उससे पहले ही मैं इसकी चिकित्सा कर दूं।' सेट्ठिंमि निग्गए ताहे य णहावितं वाहरावेत्ता एक दिन सेठ घर से बाहर, गया हुआ था। मूला ने बोडाविता, णियलेहि य बद्धा, पिट्टिया य। नाई को बुलाकर चंदना का सिर मुंडा दिया। हाथों और परियणो य आणाए वारिता-जो वाणियगस्स ___ पांवों में बेड़ियां डाल दीं। पिटाई की और सभी नौकारों को साहति सो मम णत्थि। आज्ञा देते हुए कहा- यदि किसी ने श्रेष्ठी से इस विषय में कहा तो वह इस घर में रह नहीं सकेगा। सभी नौकर उससे भयभीत हो मौन हो गए। ताए सो पिल्लितल्लओ। घरे छोदण बाहिरि चंदना को तलघर में बंदकर ताला लगा दिया। कुडंडिता। सो कमेण आगतो पुच्छति-कहिं चंदणा? समय पर श्रेष्ठी घर आया। चंदना को न देख उसने पूछा-चंदना कहां है? न कोतिवि साहति भएण। मूला के भय से किसी ने उत्तर नहीं दिया। सो जाणति-नूणं सा रमति उवरिं वा। एवं रत्तिपि श्रेष्ठी ने सोचा-कहीं ऊपर क्रीड़ा कर रही होगी। पुच्छिता। जाणति सा सुत्ता णूणं। बितियदिवसेवि रात्रि के समय में भी श्रेष्ठी ने उसके विषय में पूछा। पर ण दिट्ठा। ततिए दिवसे घणं पुच्छति, साहह, मा। किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया। श्रेष्ठी ने सोचा, वह सो भे मारेह। गई होगी। दूसरे दिन भी श्रेष्ठी ने चंदना को नहीं देखा। तीसरे दिन गंभीरता से पूछा-बताओ चंदना कहां है ? मैं तुम्हें दंडित नहीं करूंगा। ताहे थेरदासी एगा चिंतेति-किं मम जीवितेणं? एक बूढ़ी दासी ने सोचा-मेरे जीने से क्या लाभ?
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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