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प्रायोगिक दर्शन
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अ.१: समत्व इओ य. सयाणिओ चंपं पधाविओ दहिवाहणं इधर राजा शतानीक ने दधिवाहन का निग्रह करने के गेहामित्ति। णावाकडएण गतो। एगाए रत्तीए लिए चंपा पर आक्रमण किया। नौ सेना को लेकर गया। • अचिंतिया चेव णगरी वेढिया। तत्थ दहिवाहणो एक रात में ही चंपा नगरी अचानक शत्रु सेना से घिर
पमातो। रन्ना जग्गहो घोसितो। एवं जग्गहे दिन्ने। गई। दधिवाहन कहीं पलायन कर गया। राजा ने नगर दहिवाहणस्स रन्नो धारणी देवी। तीसे धूया लूटने की घोषणा की। इस लूट खसोट में राजा दधिवाहन वसमती। सा सह धूयाए एगेण ओटिएण गहिता। की रानी धारिणी देवी और उसकी पुत्री वसुमती को एक
उष्ट्र सैनिक ने अपने अधिकार में ले लिया। राया नियत्तो।
शतानीक वापस चला गया। सो उटितो चिंतेति, भणइ य-एस मे भज्जा। इयं औष्ट्रिक ने सोचा और मन ही मन कहा-यह रानी च दारियं विक्केसं।
मेरी पत्नी बन जाएगी और इस कन्या को मैं बेच दूंगा। सा देवी तेण मणोमाणसिएण दुक्खिएण अप्पणो धारिणी देवी मानसिक दुःख से व्यथित हो उठी। धूयाए य एस ण णज्जति किं ममं पावेहिति, एयं वा उसके मन में एक विकल्प उपजा-पता नहीं यह पुरुष चेहिं एवं सा अंतरा कालगता।
मुझे और इस कन्या को कहां ले जाएगा। इस आघात से
मार्ग में ही उसकी मृत्यु हो गई। पच्छा तस्स उट्टियस्स चिंता जाता-दुळं मए इस घटना से औष्ट्रिक चिन्तित हुआ। मैंने उसके भणितं महिला होहितित्ति। एवं न भणामि। मा सामने पत्नी बनने की बात कह अच्छा नहीं किया। इस एसावि मरिहिति, तो मे मोल्लंपि ण होहिति। ताहे कन्या को अब कुछ नहीं कहूंगा। कहीं मां की तरह यह भी अणुयत्तंतेण आणीता।
प्राण न त्याग दे। यह मर जायेगी तो मुझे इसका मूल्य भी नहीं मिलेगा। यह सोच उसने उसके साथ अनुकूल बर्ताव
किया। : वीहीए ओट्टिया। धणवाहेण दिट्ठा औष्ट्रिक उसे अपने साथ ले उस स्थान पर पहुंचा,
अणलंकितलावन्ना। अवस्सं रन्नो ईसरस्स वा जहां मनुष्यों का विक्रय हो रहा था। श्रेष्ठी धनावह ने एसा। मा आवई पावउत्ति, जत्तियं सो भणति कन्या को देखा। अलंकार के बिना भी उसका लावण्य तत्तिएण मोल्लेण गहिता। तेण समं ममं सुहं तत्थ फूट रहा था। यह किसी राजा अथवा श्रेष्ठी की पुत्री होनी णगरे आगमणं गमणं च होहितित्ति। तेण नियगं चाहिए। इसे कहीं विपत्ति का सामना न करना पड़े, ऐसा घरं णीता। पुच्छिता का सि तुमंति? ण साहति। सोच उसने उसे मुंहमांगा मूल्य देकर खरीद लिया। इसके पच्छा तेण धूतत्ति गहिता।.....मूलिगावि पितृनगर में मेरा आना-जाना सहज हो जाएगा। उसे अपने भणिता-जहा एस तुज्झ धूयत्ति।
घर ले आया। परिचय पाने की दृष्टि से श्रेष्ठी ने पूछा-तुम कौन हो? वह मौन रही। श्रेष्ठी ने उसे पुत्री रूप में स्वीकार कर लिया और अपनी पत्नी मूला से कहा-तेरे
लिए पुत्री लाया हूं। एवं सा तत्थ जहा नियए घरे तह सुहंसुहेण वसुमती अपने घर की तरह सुखपूर्वक रहने लगी। अच्छति। ताएवि सो सपरिजणो लोगो सीलेण य अपने शील और विनय से पूरे परिवार को उसने अपना विणएण य सव्वो अप्पणिज्जओ कओ।
बना लिया। ताझे ताणि भणंति सव्वाणि-अहो इमा , सब लोग कहते-यह स्वभाव से चंदन है। इसीलिए 'सीलबंदणत्ति। ताहे से बितियंपि य णामं कयं वसुमती का दूसरा नाम चंदना हो गया। चंदणत्ति।