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________________ आत्मा का दर्शन जाणसि । तेण सा आसासिता कल्ले समाणे दिवसे जहा लभति तहा करेमि । ४०६ एताए कहाए बट्टमाणीए विजया णामं पडिहारी मिगावतीए सतिया । सा केणवि कारणेण आगता । सा तं उल्लावं सोऊणं मिगावतीए साहति । मिगावतीवितं सोऊण महता दुक्खेण अभिभूता । सा चेडगधूता अतीव अद्धितिं पकया। राया य आगतो पुच्छति, भणति - किं तुज्झ रज्जेण मए वा ? एवं सामिस्स एवतियं कालं हिंडतस्स अभिग्गहो ण णज्जति, ण वा जाणसि एत्थ विहरंतं । तेण आसासिता - तहा करेमि जहा कल्ले लभति । ताहे सुगुतं अमच्यं सदावेति, अंबाडेति य जहा तुमं सामि आगतं ण जाणसि ? अज्ज किर चउत्थो मासो हिंडतस्स । ताहे तच्चावादी सहावितो । ताहे सो पुच्छति सवणिएणं तुझं धम्मसत्ये सव्वा पाडाणं आयारा आगता ते तुमं साहह । इमोऽवि भणितो- तुमं बुद्धिबलिओ साह । ते भांति - बहवे अभिग्गहा । ण णज्जति अभिप्पाओ । ताहे रन्ना सव्वत्य संविट्ठा। लोगेण वि परलोककंखिणा कता । सामी आगतो ण य तेहिं पगारेहिं गिण्हति । एवं च ताव एवं खण्ड-४ अभिग्रह भी नहीं जान सके। सुगुप्त ने नंदा को आश्वस्तं करते हुए कहा- कल ही मैं इस बात की खोज करूंगा और भगवान को भिक्षालाभ हो, ऐसा प्रयत्न करूंगा। यह कथा चल ही रही थी कि मृगावती की प्रतिहारी विजया किसी कार्य से वहां आई। उसने वह संवाद सुना। वहां से महारानी मृगावती के पास आई जो कुछ वहां सुना, वह सारा वृत्तांत महारानी को सुना दिया । मृगावती भी यह सुन महान् दुःख से अभिभूत हो गई। वह श्रमणोपासक राजा चेटक की पुत्री थी। महावीर को भिक्षा न मिलने का संवाद सुन उसका अधीर होना स्वाभाविक. था। महाराज शतानीक अंतःपुर में आए महारानी से अधीरता का कारण जानना चाहा। महारानी ने अपनी अंतर्व्यथा प्रकट करते हुए कहा क्या लाभ अपने इस राज्य से ? हम यह भी नहीं जान पाए कि यहां इतने लंबे समय से भगवान महावीर घूम रहे हैं उन्हें मिक्षा नहीं मिल रही है। न जाने उनके कौन सा अभिग्रह है ? राजा ने महारानी को आश्वासन देते हुए कहा-मैं कल ही ऐसा प्रयत्न करूंगा, जिससे स्वामी को भिक्षा लाभ हो । राजा ने मंत्री सुगुप्त को बुलाया और उपालंभ के स्वर में कहा- तुम्हें अब तक यह भी पता नहीं है कि भगवान महावीर कौशंबी में आए हुए हैं। वे भिक्षा के लिए चार महीनों से घूम रहे हैं। राजा का निर्देश पा मंत्री ने धर्मपाठक को बुलाया। राजा ने कहा- तुम्हारे धर्मशास्त्रों में सभी पार्षडौंसम्प्रदायों का आचार वर्णित है। वह बताओ । सुगुप्त अमात्य से भी कहा- तुम्हारे पास बुद्धिकौशल है। तुम भी कुछ कहो । उन्होंने कहा - अभिग्रह अनेक प्रकार के होते हैं। स्वामी ने कौन-सा अभिग्रह स्वीकार किया है, कहा नहीं जा सकता। उनकी बात सुन राजा ने शहर के सब लोगों को अभिग्रह के विषय में सूचना दी। परलोक की आकांक्षा से जनता ने भी अभिग्रह को पूरा करने की चेष्टा की। महावीर भिक्षा के लिए आए। पर कुछ लिया नहीं । वे पूर्ववत् घूमते रहे।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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