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प्रायोगिक दर्शन
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णाम
दासप्रथा का उन्मूलन : चन्दनबाला ३७. तती कोसंबिं गतो । तत्थ य सयाणिओ राया । तस्स मिगावती देवी । तच्चावादी धम्मपाठओ। सुगुत्तो अमच्चो। णंदा से महिला । सासमणोवासिया । सा सड्ढी त्ति मिगावतीए वयंसिया । तत्थेव णगरे धणवहो सेट्ठी । तस्स मूला भारिया । एवं ते सकम्मसंपउत्ता अच्छंति।
सामी य इमं एतारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हति
कुम्मासे सुप्पकोणेणं । एलुगं विखंभतां ।
नियत्तेसु भिक्खायरेसु ।
जदि रायधुया दासत्तणं पत्ता, णियलबद्धा, मुंडियसिरा, रोयमाणी, अब्भत्तट्ठिया एवं कप्पति, संण कप्पति ।
कालो य पोसबहुलपाडिवओ । एवं अभिग्गहं घेत्तू कोसंबी अच्छति । दिवसे दिवसे य : भिक्खायरियं फासेति । किं णिमित्तं ? बावीसं परिसहा भिक्खायरियाए उदिरिज्जति । एवं चत्तारि मासे कोसंबीए हिण्डति ।
ता नंदा घरमणुपविट्ठो । ताते सामी जातो । ताए परेण आदरेण भिक्खा णीणिता । सामी विनिग्गतो। सा अधितिं पकता ।
ताहे दासीओ भांति - एस देवज्जओ दिवे दिवे एत्थ एति ।
ता ता तं - भगवतो कोति अभिग्गहो । ताहे निरायं चेव अद्धिती जाया । सुगुत्तो अमच्चो आगतो। ताहे सो पुच्छति, भणति - किं अद्धितिं करेसि ? ताए से कहितं भणति-किं अम्हं 'अमच्यत्तणेण ? एच्चिरं कालं सामी भिक्खं ण भति । किं च ते विन्नाणेणं ? जदि एतं अभिग्गहं न
सामग्री जुटाना,
आरंभ - वध करना ।
अ. १ : समत्व
भगवान महावीर कौशंबी नगरी में विहार कर रहे थे। शतानीक वहां का राजा था। उसकी रानी का नाम था मृगावती । तत्त्ववादी उसका धर्मपाठक था । सुगुप्त अमात्य था। नंदा सुगुप्त की पत्नी थी। वह श्रमणोपासिका थी । श्रमणोपासिका होने के कारण वह मृगावती की सखी थी। उसी नगरी में धनावह श्रेष्ठी रहता था । मूला उसकी पत्नी थी। सब अपने-अपने कर्त्तव्य में संलग्न थे ।
भगवान महावीर ने इस प्रकार अभिग्रह (संकल्प) किया
छाज के कोने में पड़े उड़द ।
देने वाली का एक पैर देहली के भीतर और दूसरा
बाहर |
भिक्षाचर भिक्षा लेकर लौट गए हों।
राजकुमारी दासी बनी हुई हो, उसके हाथ-पैरों में बेड़ियां हों, सिर मुंडा हुआ हो, नेत्र अश्रुपूरित हों, वह भूखी हो - ऐसी भिक्षा मिलेगी तो लूंगा, अन्यथा नहीं ।
पौषकृष्णा प्रतिपदा का समय। इस प्रकार " का अभिग्रह ग्रहण कर भगवान महावीर कौशंबी में विहरण कर रहे थे। वे प्रतिदिन भिक्षा के लिए जाते क्योंकि भिक्षाचर्या में बाईस ही प्रकार के परीषहों की उदीरणा होती है। इस प्रकार वे चार महीने तक कौशंबी में घूमते रहे।
एक दिन भगवान श्रमणोपासिका नंदा के घर भिक्षा के लिए गए। उसने भगवान को पहचान लिया। वह अत्यंत आदर के साथ भिक्षा लेकर आई। पर महावीर भिक्षा लिए बिना ही लौट गए। नंदा के धैर्य का बांध टूट गया।
दासियों ने कहा- आप इतनी अधीर क्यों होती हैं ? यह देवार्य तो प्रतिदिन ही यहां भिक्षा के लिए आता है और कुछ लिए बिना ही वापस चला जाता है।
नंदा ने जाना - भगवान के अवश्य कोई अभिग्रह है । तब वह और अधिक अधीर हो उठी। अमात्य सुगुप्त घर आया। उसने पूछा–आज इतनी अधीर क्यों हो रही हो ? नंदा बोली- आपके मंत्री पद से क्या लाभ? भगवान को इतने लंबे समय से भिक्षा नहीं मिल रही है। और क्या लाभ आपके बुद्धिकौशल का यदि आप भगवान का