________________
प्रायोगिक दर्शन
४०३
अ.१: समत्व पुट्विं च इण्हिं च अणागयं च
मेरे मन में कोई प्रद्वेष न पहले था, न वर्तमान में है मणप्पदोसो न मे अत्थि कोइ। और न भविष्य में होगा। यक्ष मेरी उपासना कर रहा था। जक्खा हु वेयावडियं करेंति
उसी के द्वारा कुमार प्रताड़ित हुए हैं। ___ तम्हा हु एए निहया कुमारा॥ अत्यं च धम्मं च वियाणमाणा
आप अर्थ और धर्म के ज्ञाता हैं। आप भूतिप्रज्ञ-मंगल तुम्भे न वि कुप्पह भूइपण्णा। प्रज्ञा युक्त हैं। आप कोप नहीं करते। इसलिए हम सब तुम्भं तु पाए सरणं उवेमो
मिलकर आपके चरणों की शरण ले रहे हैं। समागया सव्वजणेण अम्हे॥ अच्चेमु ते महाभाग!
महाभाग! हम आपकी अर्चा करते हैं। आपका कुछ नते किंचि न अच्चिमो। भी ऐसा नहीं है जिसकी हम अर्चा न करें। आप नाना भुंजाहि सालिम कूरं .
व्यंजनों से युक्त चावल निष्पन्न भोजन लेकर हमें कृतार्थ
नाणावंजणसंजुयं॥ करें। इमं च मे अत्थि पभूयमन्नं .
मेरे यहा यह प्रचुर भोजन पड़ा है। हमें अनुगृहीत सू अम्ह अणुग्गहट्ठा। करने के लिए आप कुछ खाएं। महात्मा हरिकेशबल ने बाढं ति पडिच्छइ भत्तपाणं
उनकी प्रार्थना स्वीकार की और एक मास की तपस्या का मासस्स ऊपारणए महप्या॥ पारणा करने के लिए भक्त-पान ग्रहण किया। तहियं गधोदयपुप्फवासं
देवों ने वहां सगंधित जल. पष्प और दिव्य रत्नों की दिव्वा तहिं क्सुहारा य वुट्ठा। वर्षा की, आकाश में दुन्दुभि बजाई और अहोदानम्पहयाओ दुंदुहीओ सुरेहि
आश्चर्यकारी दान का घोष किया। आगासे अहो दाणं च घुटुं॥ सक्खं खु दीसइ तवो विसेसो
यह प्रत्यक्ष तप की महिमा दिखाई दे रही है। जाति न दीसई जाइविसेस कोई। की कोई विशेषता नहीं है। जिसकी ऋद्धि ऐसी महान् सोवागपुत्ते हरिएससाहू
(अचिन्त्य शक्ति सम्पन्न) है, वह हरिकेश मुनि चांडाल जस्सेरिसा इड्ढि महाणुभागा। का पुत्र है। मानवीय एकता २७. एक्का मणुस्सजाई।
मनुष्य जाति एक है।
२८. कम्मुणा बंभणो होई कम्मुणा होइ खत्तिओ। मनुष्य कर्म से ब्राह्मण होता है। कर्म से क्षत्रिय होता वइस्सो कम्मुणा होइ सुहो हवइ कम्मुणा॥ है। कर्म से वैश्य होता है और कर्म से ही शूद्र होता है।
समत्व : अहिंसा जंबू आह२९.को सासओ धम्मो?
जंबू-भंते! शाश्वत धर्म कौन सा है?
सुधर्मा आह३०.सव्वे पाणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्वा, ण अज्जावेयव्वा, ण परिघेतव्वा, ण परितावेयव्वा, ण उद्दवेयव्वा
सुधर्मा-मैंने भगवान से सुना है-किसी भी प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व का हनन न करे। उन पर शासन न करे। उन्हें दास न बनाए। उन्हें परिताप न दे। उनका