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________________ आत्मा का दर्शन ४०२ खण्ड-४ यह महान् यशस्वी है। महान् अनुभागअचिन्त्यशक्ति से सम्पन्न है। घोर व्रती है। घोर पराक्रमी है। इसकी अवेहलना मत करो। यह अवहेलनीय नहीं है। कहीं यह अपने तेज से तुम लोगों को भस्म न कर डाले। __ सोमदेव पुरोहित की पत्नी भद्रा के सुभाषित वचनों को सुनकर यक्ष ने ऋषि का वैयावृत्त्य (परिचर्या) करने के लिए कुमारों को भूमि पर गिरा दिया। महाजसो एस महाणुभागो घोरव्वओ घोरपरक्कमो य। मा एयं हीलह अहीलणिज्ज मा सव्वे तेएण भे निदहेज्जा॥ एयाइं तीसे वयणाइ सोच्चा पत्तीइ भंडाइ सुहासियाई। इसिस्स वेयावडियट्ठयाए जक्खा कुमारे विणिवाडयंति॥ ते घोररूवा ठिय अंतलिक्खे असुरा तहिं तं जणं तालयंति। ते भिन्नदेहे रुहिरं वमंते पासित्तु भद्दा इणमाहु भुज्जो॥ गिरिं नहेहिं खणह अयं दंतेहिं खायह। जायतेयं पाएहि हणह जे भिक्खं अवमन्नह॥ घोर रूप वाला यक्ष आकाश में स्थिर होकर उन छात्रों को मारने लगा। उनके शरीरों को क्षत-विक्षत और उन्हें रुधिर का वमन करते देख भद्रा फिर बोली आसीविसो उग्गतवो महेसी घोरव्वओ घोरपरक्कमो य। अगणिं व पक्खंद पयंगसेणा जे भिक्खयं भत्तकाले वहेह॥ सीसेण एवं सरणं उवेह समागया सव्वजणेण तुब्भे। जइ इच्छह जीवियं वा धणं वा लोगं पि एसो कुविओ डहेज्जा॥ अवहेडिय पिदिसउत्तमंगे पसारिया बाहु अकम्मचेठे। निब्भेरियच्छे रुहिरं वमते उड्ढंमुहे निग्गयजीहनेत्ते॥ जो इस भिक्षु का अपमान कर रहे हैं, वे नखों से पर्वत खोद रहे हैं। दांतों से लोहे को चबा रहे हैं और पैरों से अग्नि को रौंद रहे हैं। यह महर्षि आशीविष-लब्धि से सम्पन्न है। उग्र तपस्वी है। घोर व्रती और घोर पराक्रमी है। भिक्षा के समय जो व्यक्ति इस भिक्षु का वध कर रहे हैं, वे पतंगसेना की भांति अग्नि में झंपापात कर रहे हैं। यदि तुम जीना चाहते हो, ऐश्वर्य को चाहते हो तो सब मिलकर मुनि को नमन करो और इस मुनि की शरण में आओ। कुपित होने पर यह समूचे संसार को भस्म कर सकता है। ___ भद्रा यह चेतावनी दे ही रही थी कि उन छात्रों के सिर पीठ की ओर झुक गए। उनकी भुजाएं फैल गईं। वे निष्क्रिय हो गए। उनकी आंखें खुली की खुली रह गईं। मुंह से रुधिर निकलने लगा। मुंह ऊपर को हो गए। जीभ और नेत्र बाहर निकल आए। उन छात्रों को काठ की तरह निश्चेष्ट देख सोमदेव ब्राह्मण चिंतातुर हो गया और घबराया हुआ अपनी पत्नी सहित मुनि के पास आया। उन्हें प्रसन्न करते हुए कहने लगा-भंते! हमने जो अवहेलना और निंदा की है, उसे क्षमा करें। भंते! मूढ बालकों ने अज्ञानवश जो आपकी अवहेलना की, उसे आप क्षमा करें। ऋषि प्रसाद-गुण सम्पन्न होते हैं। वे किसी पर कुपित नहीं होते। ते पासिया खंडिय कट्ठभूए विमणो विसण्णो अह माहणो सो। इसिं पसाएइ सभारियाओ हीलं च निंदं च खमाह भंते! बालेहि मूढेहि अयाणएहिं - जं हीलिया तस्स खमाह भंते! महप्पसाया इसिणो हवंति न ह मुणी कोवपरा हवंति॥
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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