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________________ प्रायोगिक दर्शन ३९५ अ.१: समत्व __ • सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। ३. एगं च णं महं चित्तविचित्तं पक्खगं ___३. चित्रविचित्र पंखों वाले एक बड़े पुंस्कोकिल को पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे।। स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। ४. एगं च णं महं दामदुगं सव्वरयणामयं सुमिणे ४. सर्वरत्नमय दो बड़ी मालाओं को स्वप्न में पासित्ता णं पडिबुद्धे। देखकर प्रतिबुद्ध हुए। । ५. एगं च णं महं सेतं गोवग्गं सुमिणे पासित्ता णं ५. एक महान् श्वेत गोवर्ग को स्वप्न में देखकर पडिबुद्धे। प्रतिबुद्ध हुए। ६. एगं च णं महं पउमसरं सव्वओ समंता ६. चिहुं ओर कुसुमित एक बड़े पद्मसरोवर को कुसुमितं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। । ७. एगं च णं महं सागरं उम्मी-वीची-सहस्स- ७. स्वप्न में हजारों ऊर्मियों और वीचियों से परिपूर्ण कलितं भुयाहिं तिण्णं सुमिणे पासित्ता णं एक महासागर को भुजाओं से तीर्ण हुआ पडिबुद्धे। देखकर प्रतिबुद्ध हुए। ८. एगं च णं महं दिणयरं तेयसा जलंतं सुमिणे ८. तेज से जाज्वल्यमान एक महान् सूर्य को स्वप्न पासित्ता णं पडिबुद्धे। __ में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। ९. एगं च णं महं हरि-वेरुलिय-वण्णाभेणं ९. स्वप्न में भूरे व नीले वर्णवाली अपनी आंतों से नियएणमंतेणं माणसत्तरं पव्वतं सव्व मानुषोत्तर पर्वत को चारों ओर से आवेष्टित ओसमंता आवेढियं . सुमिणे पासित्ता णं और परिवेष्टित हुआ देखकर प्रतिबुद्ध हुए। पडिबुद्ध। . १०. एगं च णं महं मंदरे पव्वत्ते मंदरचूलियाए १०. स्वप्न में महान् मन्दर पर्वत की मन्दर चूलिका उवरिं सीहासणवरगयमत्ताणं सुमिणे पासित्ता . पर अवस्थित सिंहासन के ऊपर अपने आपको णं पडिबुद्धे। बैठे हुए देखकर प्रतिबुद्ध हुए। लोगो पभाते आगतो। उप्पलो य इंदसम्मो य। ते प्रातःकाल लोग आए। उत्पल और इन्द्रशर्मा भी अच्चणियं दिव्वं गंधचुन्नपुप्फवासं च वासंति। आए। उन्होंने अर्चनीय दिव्य गंध चूर्ण और पुष्पों की वर्षा भट्टारगं च अक्खयसव्वंगे। ताहे सो लोगो सव्वो की। महावीर को देखा कि उनके सभी अंग अक्षत हैं। उस सामिस्स उक्किट्ठिसीहणादं करेंतो पादेसु पडितो समय सब लोग आनन्दमय सिंहनाद करते हुए भगवान के भणति-जहा देवज्जतेण देवो उवसामितो। महिमं चरणों में प्रणत हो गए और बोले-आपने यक्ष को उपशांत पगतो। किया है। हम आपकी महिमा करते हैं। उप्पलोऽवि सामि दटुं पहठो वंदति। ताहे उत्पल महावीर को देखकर हर्षित हुआ। वह वंदना भणति-सामी! तुब्भेहिं अंतिमरातीए दससमिणा। कर बोला-स्वामिन् ! आपने रात्रि के अंतिम प्रहर में दस दिवा। तेसिं इमं फलं ति स्वप्न देखे हैं, उनका फलादेश यह है१. जो तालपिसायो हतो तमचिरेण मोहणिज्जं १. आपने तालपिशाच को पराजित देखा, उसके उम्मूलेहिसि। फलस्वरूप आप शीघ्र ही मोहनीय कर्म का उन्मूलन करेंगे। २. जो य सेय सउणो तं सुक्कज्झाणं झाहिसि। २. आपने श्वेत पंखवाले पुंस्कोकिल को देखा, उसके फलस्वरूप आप शुक्लध्यान को प्राप्त होंगे। ३. जो विचित्तो कोइलो तं दुवालसंगं पन्नवेहिसि। ३. आपने चित्र-विचित्र पंखवाले पुंस्कोकिल को लचाए
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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