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________________ आत्मा का दर्शन तित्थकरो होज्जत्ति अद्धितिं करेति, बीहेति य तत्थ रत्तिं गंतुं । ३९४ ताहे सो वाणमंतरो जाहे सद्देण ण वीहेति ताहे हत्थिरूवेण उवसग्गं करेति पिसायरूवेण य । एतेहि वि जाहे ण तरति खोभेउं ताहे पभायसमए सत्तविहं वेयणं करेति, तं जहा- १. सीसवेयणं, २. कन्नवेयणं, ३. अच्छिवेयणं, ४. दंतवेयणं, ५. णहवेयणं, ६. नक्कवेयणं, ७. पिट्ठिवेयणं । एक्केक्का वेयणा समत्था पागतस्स जीतं कामेतुं । किं पुण सत्तताओ उज्जलाओ। भगवं अहियासेति । ताहे सो देवो जाहे न तरइ चालेउं वा खोभेउं वा ताहे तंतो संतो परितंतो पायपडिओ खामेइ-खमेह भट्टारगत्ति । ताहे सिद्धत्थो उद्धातितो-हं भो सूलपाणी ! अपत्थियपत्थया ! न जाणसि सिद्धत्थरायसुयं भगवंतं तित्थगरं । जति सक्को देवराया जाणतो तो ते णं पावेंतो। ताहे सो भीतो दुगुणं खामेति । ताहे सिद्धत्थो धम्मं कहेति । तत्थ उवसंतो सामिस्स महिमं करेति । महावीर के दस स्वप्न २०. तत्थ लोगो चिंतेति सो तं देवज्जतं मारेत्ता इयाणि कीलेति । सामी य देसूणचत्तारि जामे अतीव परितावितो समाणो भाकाले मुहुत्तमेत्तं निहापमादं गतो । तत्थिमे दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धो, तं जहा १. एगं च णं महं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुमिणे पराजितं पासित्ताणं पडिबुद्धे । २. एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं खण्ड - ४ सुनकर वह अधीर हो उठा। कहीं यह कोई तीर्थंकर तो नहीं है? पर रात्रि में उसकी वहां जाने की हिम्मत नहीं हुई। इधर यक्ष के अट्टहास से जब महावीर भयभीत नहीं हुए तब वह हाथी का रूप बनाकर उपसर्ग करने लगा। उससे भी भयभीत नहीं हुए तब उसने पिशाच का रूप बनाया। इतना करने पर भी जब वह महावीर को क्षुब्ध न कर सका तो उसने प्रभात काल में सात प्रकार की वेदना--सिर, कान, आंख, दांत, नख, नाक और पीठ में उत्पन्न की। साधारण व्यक्ति के लिए एक-एक वेदना भी प्राणलेवा थी। फिर ये सातों एक साथ प्रज्वलित हों तो कितना भयानक होता है। भगवान महावीर उन सबको सहते रहे। आखिर प्रभु को विचलित करने में स्वयं को असमर्थ पा यक्ष श्रान्त, क्लान्त हो गया। थक गया। महावीर के चरणों में गिर कर बोला- पूज्य ! मुझे क्षमा करें। इस बीच सिद्धार्थ यक्ष भी वहां पहुंच गया। उसने कहा - अनिष्ट को 'आमंत्रित करने वाले ओ शूलपाणि ! क्या सिद्धार्थराज के पुत्र तीर्थंकर महावीर को तू नहीं जानता? देवराज इन्द्र को ज्ञात होने पर तुम्हारी क्या दशा होगी ? वह भयभीत होकर पुनः पुनः महावीर से क्षमा मांगने लगा । सिद्धार्थ ने उसे धर्म का बोध दिया। यक्ष शांत होकर भगवान की महिमा करने लगा । ग्रामस्थित लोग सोच रहे थे- वह यक्ष इस देवार्य को मारकर अब क्रीड़ा कर रहा है। भगवान को कुछ न्यून चार प्रहर तक अतीव परिताप दिया गया। फलतः प्रभातकाल में भगवान को मुहूर्त मात्र नींद आ गई। निद्राकाल में महावीर ने दस स्वप्न देखे और जाग गए। स्वप्न इस प्रकार हैं १. महान घोर रूपवाले दीप्तिमान एक तालपिशाच (ताड़ जैसे लंबे पिशाच) को स्वप्न में पराजित हुआ देखकर प्रतिबुद्ध हुए । २. श्वेत पंखों वाले एक बड़े पुंस्कोकिल को स्वप्न
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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