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________________ आत्मा का दर्शन ३९२ खण्ड-४ महावीर और ग्वाला १८.तत्थ एगो गोवो। सो दिवसं बइल्ले वाहेत्ता गामसमीवं पत्तो। ताहे चिंतेति-एते गामसमीवे खेत्ते चरंतु। अहंपि ता गाइओ दोहेमि। सोऽवि ताव अंतो परिकम्मं करेति। ते बइल्ला चरंता अडविं पइट्ठा। सो गोवो निग्गतो। ताहे पुच्छति-कहिं ते बइल्ला? ताहे सामी तुण्हिक्को अच्छति। सो चिंतेइ-एस ण जाणति। तो मग्गितुमाढत्तो। ते य बइल्ला जाहे धाता ताहे गामसमीवं आगता। माणुसं दळूण रोमंथेता अच्छंति। ताहे सो आगतो पेच्छति तत्थेव निविठे। ताहे आसुरुत्तो। कर्मार ग्राम में एक ग्वाला रहता था। वह एक दिन बैलों को हांकता हआ गांव के समीप पहुंचा। ये बैल गांव . के इस निकटवर्ती खेत में चरते हैं, तब तक मैं अपनी गायों को दुह लेता हूं, यह सोच वह बाड़े में जाकर दुहने की तैयारी करने लगा। बैल चरते हुए जंगल में चले गए। ग्वाला बाड़े से निकला। बैलों को वहां न देख उसने महावीर से पूछा-मेरे बैल कहां गये? महावीर मौन रहे। उसने सोचा, शायद यह नहीं जानता। वह बैलों को खोजने लगा। बैल तृप्त होकर गांव के समीप लौट आए। वहां मनुष्य (महावीर) को खड़ा देख बैठ गए और जुगाली करने लगे। उस समय ग्वाला भी वहां आ गया। एकाएक महावीर के पास बैठ बैलों को देख वह क्रुद्ध हो उठा। इसने ही मेरे बैल चुराए हैं। मैं बैलों को लेकर बाद में जाउंगा। पहले इसकी खबर लेता हूं-यों कहता हुआ वह चाबुक लेकर महावीर की ओर दौड़ा। देवराज इन्द्र उस समय यह जानने के लिए एकाग्र हुआ कि दीक्षा के प्रथम दिन महावीर क्या कर रहे हैं? उसने देखा-ग्वाला चाबुक लेकर महावीर की ओर दौड़ रहा है। देवराज इन्द्र ने उसे वहीं स्तंभित कर दिया और निकट आकर डांटते हुए कहा अरे दुरात्मन् ! तू नहीं जानता ये सिद्धार्थराज के पुत्र महावीर हैं। आज ही दीक्षित एतेण दामएण हणामि। एतेण मम चोरिता एते बइल्ला। पभाए घेत्तुं वच्चीहामि। ताहे सक्को देविंदो देवराया चिंतेइ-किं अज्ज सामी पढमदिवसे करेति? जाव पेच्छति तं गोवं धावंतं। ताहे सो तेण थंभितो। पच्छा आगतो तं तज्जेति-दुरात्मा! न जाणसि सिद्धत्थरायपुत्तो अज्ज पव्वतितो।...... ताहे सक्को भणति-भगवं! तुब्भ उवसग्गबहुलं, इन्द्र महावीर के निकट आकर बोला-प्रभो! आपके तो अहं बारसवासाणि वेयावच्चं करेमि। साधना काल में बहुत उपसर्ग आने वाले हैं। आप मुझे अनुमति दें। मैं बारह वर्ष तक आपकी सेवा में रहूं। ताहे सामिणा भण्णति-नो खलु सक्का! एवं भूअं इन्द्र के इस निवेदन पर महावीर बोले-शक्र! ऐसा वा भव्वं वा भविस्सइ वा जं णं अरिहंता देविंदाण न कभी हुआ है, न होता है और न कभी होगा। अर्हतों वा असुरिंदाण वा नीसाए केवलणाणं उप्पा.सु वा ने कभी किसी देवेन्द्र अथवा असुरेन्द्र के सहारे न उप्पाडेंति वा उप्पाडिस्संति वा, तवं वा करेंसु वा केवलज्ञान प्राप्त किया है, न करते हैं और न करेंगे। तप करेंति वा करिस्संति वा, सद्धिं वा वच्चिंसु वा न किसी के सहारे किया है, न करते हैं और न करेंगे। वच्चंति वा वच्चिस्संति वा। णण्णत्थ सएणं यात्रा न किसी के सहारे की है, न करते हैं और न उट्ठाण- कम्म - बल - विरिय - पुरिसक्कार . ___ करेंगे। वे केवल अपने उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, परक्कमेणं। पुरुषकार और पराक्रम के सहारे केवलज्ञान प्राप्त करते
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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