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________________ उद्भव और विकास झंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं मणुयाणं . परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति। अ. ३ : आदिम युग : अर्हत् ऋषभ होते हैं। पर वे मनुष्य के परिभोग में नहीं आते हैं। २१.अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे सीहाइ वा वग्याइ वा विग-दोविग-अच्छ-तच्छ-सियाल- विडाल-सुणग-कोकंतिय-कोल-सुणगाइ वा? हंता अत्थि, णो चेव णं ते अण्णमण्णस्स तेसिं वा मणुयाणं आबाहं वा वाबाहं वा छविच्छेयं वा उप्पाएंति। पगहभइया णं ते सावयगणा पण्णत्ता समणाउसो? भंते! उस समय भरतक्षेत्र में सिंह, बाघ, भेड़िया, गेंडा, भालू, तेंदुआ, सियाल, बिडाल, कुत्ता, लोमड़ी और जंगली सूअर होते हैं? होते हैं। पर वे मनुष्यों को न बाधा पहुंचाते हैं और न काटते हैं। वे हिंस्र पशु प्रकृति से भद्र होते हैं, आयुष्मन् श्रमण! २२.अत्यि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे सालीति वा वीहि-गोहूम-जव-जवजवाइ वा कल-मसूर-मुग्ग- मास - तिल-कुलत्थ - णिप्फावग - आलिसंदग- अयसि - कसंभ - कोइव -कंग-वरग-रालग-सणसरिसव-मूलाबीआइ वा? . हूंता अत्यि, णो चेव णं तेसिं मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति। भंते! उस समय भरतक्षेत्र में शालि, ब्रीहि, गेहूं, जौ, जवजव, मसूर, मूंग, उड़द, तिल, कुलत्थी, राजमाष, चवला, अतसी, कुसुम्भ, कोद्रव, कंगु, वरक, मालकांगणी, सण, सरसों, मला नाम के शाक विशेष के बीज होते हैं? होते हैं। पर मनुष्य उनका परिभोग नहीं करते। २३.अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे गड्ढाइ वा .. दरी-ओवाय-पवाय-विसम-विज्जलाइ वा? . - भंते! उस समय भरतक्षेत्र में गड्ढा, गुफा, अवपात, प्रपात (जहां से मनुष्य नीचे गिर जाता है) उबड़-खाबड़ भूमि और पंकिल भूमि होती है? नहीं। उस समय का भूमिभाग मृदंग की तरह बहुत रमणीय और समतल होता है। जो इणठे समढे, भरहे वासे बहुसमरमणिज्जे • भूमिभागे पणत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेह वा। २४.अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे खाणूह वा कंटग-तणय-कयवराइ वा पत्तकयवराइ वा? ___णो इणठे समठे, ववगयखाणुकंटगतण-कयवर- पत्सकयवरा णं सा समा पण्णत्ता समणाउसो! भंते! उस समय भरतक्षेत्र में ढूंठ, कांटे, तृण-घास का कचरा, पत्तों का कचरा होता है? नहीं। उस समय ढूंठ आदि नहीं होते, आयुष्मन् श्रमण! भंते! उस समय भरतक्षेत्र में डांस, मच्छर, जूं, लीख, खटमल और चीचड़ होते हैं ? २५, अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे डंसाइ वा मसगाइ वा जूआइ वा लिक्खाइ वा ढिंकुणाइ वा पिसुआइ वा? .. णो इणढे समढे, ववगय डंस-मसग-जूअ- लिक्ख-ढिंकुण-पिसुआ उवद्दवविरहिया णं सा समा पण्णत्ता समणाउसो! नहीं। उस समय डांस आदि का उपद्रव नहीं होता, आयुष्मन् श्रमण !
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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