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आत्मा का दर्शन
खण्ड-१
होते हैं। पर उनमें राग का तीव्र बंधन नहीं होता।
हंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं मणुयाणं तिव्वे. रागबंधणे समुप्पज्जइ।
१५.अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे आवाहाइ
वा वीवाहाइ वा जण्णाइ वा सद्धाइ वा थालीपागाइ वा पितिपिंडनिवेदणाइ वा? णो इणठे समठे, ववगयआवाह-विवाहजण्णसद्ध-थालीपाग-पितिपिंडनिवेदणा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो!
भंते! उस समय भरतक्षेत्र में सगाई, विवाह, यज्ञ (इष्टदेव की पूजा) श्राद्ध, स्थालीपाक और पितृपिंडदान होते हैं? "नहीं। वे मनुष्य सगाई आदि से मुक्त होते हैं।
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१६.अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे इंदमहाति
वा खंद-णाग-जक्ख-भूय-अगड-तलाग-दह-णदि- रुक्ख-पव्वय-थूभ-चेइयमहाइ वा?
णो इणठे समठे, ववगयमहिमा णं ते मण्या पण्णत्ता समणाउसो!
भंते! उस समय भरतक्षेत्र में इन्द्र, स्कन्द, नाग, यक्ष, भूत, कूप, तालाब, द्रह, नदी, वृक्ष, पर्वत, स्तूप, चैत्य आदि के महोत्सव होते हैं? ...
नहीं। वे मनुष्य महोत्सव नहीं मनाते हैं, आयुष्मन् श्रमण!
१७.अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे णड
पेच्छाइ वा णट्ट-जल्ल-मल्ल-मुठिय-वेलंबगकहग-पवग-लासगपेच्छाइ वा?
भंते! उस समय भरतक्षेत्र में नाटक, नृत्य, रस्सीकूद, मल्लकुश्ती, मुक्केबाज, विदूषक, कथक, धावक, रास : इनके प्रेक्षास्थल और इन्हें देखने के लिए लोगों का मिलन होता है? ____नहीं। वे मनुष्य कुतूहल रहित होते हैं, आयुष्मन् श्रमण!
णो इणठे समठे, ववगयकोउहल्ला णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो!
१८.अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे सगडाइ वा
रहाइ वा....?
भंते! उस समय भरतक्षेत्र में शकट, रथ, यान, वाहन, डोली, बग्घी, शिविका और स्यन्दमानिका होते
णो इणढे समठे, पायचारविहारा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो!
नहीं। वे मनुष्य पादचारी होते हैं, आयुष्मन् श्रमण!
१९.अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे गावीइ वा महिसीइ वा अयाइ वा एलगाइ वा.....? हंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति।
. भंते! उस समय भरतक्षेत्र में गाय, भैंस, बकरी और भेड़ होते हैं?
होते हैं। पर वे मनुष्य के परिभोग में नहीं आते।
२०.अस्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे आसाइ वा
हत्थि-उट्ट-गोण-गवय-अय-एलग-पसय-मियवराह- रुरु-सरभ-चमर-कुरंग-गोकण्णमाइया?
भंते! उस समय भरतक्षेत्र में घोड़ा, हाथी, ऊंट, बैल, रोझ, बकरा, भेड़, मृग, सूअर, रुरु, शरभ, चमर, कुरंग और गोकर्ण आदि होते हैं?
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