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________________ २३ अ. ३ : आदिम युग : अर्हत् ऋषभ उद्भव और विकास गोयमा! णो इणढे समठे, ववगयअसि-मसि- किसि-वणिय-पणिय-वाणिज्जा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो! गौतम! नहीं। वे मनुष्य असि, मसि, कृषि, व्यापार, लेने-देन और व्यवसाय नहीं करते हैं, आयुष्मन् श्रमण! ९. अस्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे हिरण्णेइ वा सुवण्णेइ वा कंसेइ वा दूसेइ वा मणिमोत्तिय-संख- सिल-प्पवाल-रत्तरयण-सावज्जेइ वा? हंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छइ। . भंते! उस समय भरतक्षेत्र में हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य, वस्त्र, मणि, मुक्ता, शंख, मैनसिल, मूंगा, माणक और स्वापतेय (धन) होते हैं? होते हैं। पर मनुष्य उनका उपभोग नहीं करते। १०.अस्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे रायाइ वा जुवरायाइ वा ईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय- इन्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहाइ वा? गोयमा! णो इणढे समठे, ववगयइड्ढिसक्कारा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो! भंते! उस समय भरतक्षेत्र में राजा, युवराज, अमात्य, नगररक्षक, सीमावर्ती राजा, कौटुंबिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति और सार्थवाह होते हैं? गौतम! नहीं। वे मनुष्य ऋद्धि और सत्कार से मुक्त होते हैं, आयुष्मन् श्रमण! ११.अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे दासेइ वा भंते! उस समय भरतक्षेत्र में दास, नौकर, शिष्य, . । पेसेइ वा सिस्सेइ वा भयगेइ वा भाइल्लएइ वा भूतक, भागीदार और कर्मकर होते हैं ? .. कम्मारएइ वा? ... णो इणढे समठे, ववगयआभिओगा णं ते मणुया . नहीं। वे मनुष्य आभिओग-स्वामी-सेवक संबंध से __पण्णत्ता समणाउसो! मुक्त होते हैं, आयुष्मन् श्रमण! भंते! उस समय भरतक्षेत्र में माता-पिता, भाईबहिन, पत्नी, पुत्र-पुत्री और पुत्रवधू होते हैं? १२.अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे मायाइ वा पियाइ वा भाया-भगिणि-भज्जा-पुत्त-धूया-सुण्हाइ वा? हंता अत्थि, णो चेव णं तिव्वे पेम्मबंधणे समुप्पज्जा । होते हैं। पर उनमें तीव्र प्रेम का बंधन नहीं होता। १३.अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे अरीइ वा वेरिएइ वा घायएइ वा वहएइ वा पडिणीयएइ वा पच्चामित्तेइ वा? जो इणठे समठे, ववगयवेराणुसया णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो! भंते! उस समय भरतक्षेत्र में अरि, बैरी, घातक, वधक. प्रत्यनीक और प्रत्यमित्र (वह अमित्र जो पहले मित्र रह चुका है) होते हैं? नहीं। वे मनुष्य वैर-विरोध से रहित होते हैं, आयुष्मन् श्रमण! . १४.अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे मित्ताइ वा वयंसाइ वा णायएइ वा घाडिएइ वा सहाइ वा सुहीइ वा संगइएति वा? भंते! उस समय भरतक्षेत्र में मित्र, वयस्क, ज्ञातक (अपनी ज्ञातिवाला) सहचारी, सखा, सुहृद् और सांगतिक (साथी) होते हैं?
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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