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आत्मा का दर्शन
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खण्ड-१
गोयमा! कूडागारसंठिया पेच्छा-च्छत्त-झय-थूभतोरण - गोपुर - वेड्या - चोप्पालग - अट्टालग- पासाय - हम्मिय - गवक्ख . वालग्गपोइया- वलभीघरसंठिया, अण्णे इत्थ बहवे वरभवण- विसिट्ठसंठाणसंठिया दुमगणा सुहसीयलच्छाया पण्णत्ता समणाउसो!
गौतम! वे वृक्ष कूटाकार, दर्शकदीर्घा, छत्र, ध्वजा, स्तूप, तोरण, गोपुर, वेदिका, बरामदा, अटारी, प्रासाद, हर्म्य, गवाक्ष, जलमंदिर और छप्पर के संस्थानवाले होते हैं। और भी अनेक वृक्षगण भवनों के विशिष्ट संस्थानवाले, शीतल तथा सुखद छायावाले होते हैं।
कल्पवृक्ष के प्रकार५. सुसमसुसमाए णं समाए दसविहा रुक्खा सुषम-सुषमाकाल में दस प्रकार के वृक्ष उपभोग में उवभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, तं जहा
आते हैंमतंगया य भिंगा, तुडितंगा दीव जोति चित्तंगा। १. मृदांगक' २. भृग ३. त्रुटितांग चित्तरसा मणियंगा, गेहागारा अणियणा य॥ ४. दीपांगर्ष ५. ज्योतिअंग' ६. चित्रांग
७. चित्ररस ८. मणिअंग ९. गेहाकार
१०. अनग्न
सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश ६. अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे गेहाइ वा भंते! उस समय भरतक्षेत्र में घर, दुकान आदि होते
गेहावणाइ वा? गोयमा! णो इणढे समठे। रुक्खगेहालया णं ते गौतम! नहीं। वे मनुष्य वृक्षगृहों में रहते हैं, आयुष्मन् मणुया पण्णत्ता समणाउसो!
श्रमण!
भंते! उस समय भरतक्षेत्र में ग्राम, नगर, निगम, राजधानी, खेट, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पट्टन, खान, आश्रम, संबाध और सन्निवेश होते हैं ?
७. अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे गामाइ वा
णगराइ वा णिगमाइ वा रायहाणीइ वा खेडाइ वा कब्बडाइ व मडंबाइ वा दोणमुहाइ वा पट्टणाइ वा आगराइ वा आसमाइ वा संबाहाइ वा सण्णिवेसाइ वा? गोयमा! णो इणठे समठे, जहिच्छियकामगामिणो णं ते मणुया पण्णत्ता।
गौतम! नहीं। वे इच्छानुसार विचरण करते हैं।
८. अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे असीइ वा मसीइ वा किसीइ वा वणिएत्ति वा पणिएत्ति वा वाणिज्जेइ वा?
भंते! उस समय भरतक्षेत्र में असि, मसि, कृषि, व्यापार. लेन-देन और व्यवसाय होते हैं?
१. मादक रसवाले। २. पात्राकार पत्तोंवाले। ३. वाद्यध्वनि उत्पन्न करनेवाले। ४. प्रकाश करनेवाले। ५. अग्नि की भांति उष्मा सहित प्रकाश करनेवाले।
६. मालाकार पुष्पों से लदे हुए। ७. विविध प्रकार के मनोज्ञ रसवाले। ८. आभरणाकार फूल-पत्रवाले। ९. घर के आकारवाले। १०. नग्नत्व को ढांकने के उपयोग में आनेवाले।