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________________ आदिम युग : अर्हत् ऋषभ १. तीसे णं भंते! पुढवीए केरिसए आसाए पण्णत्ते ? गोयमा ! से जहाणामए गुलेइ वा खंडेइ वा सक्कराइ वा....... भवे एयारूवे ? णो इट्ठे समट्ठे । सा णं पुढवी इत्तो इट्ठतरिया चेव कंततरिया चैव पियतरिया चेव । २. तेसि णं भंते! पुप्फफलाणं केरिसए आसाए पण्णत्ते ? गोयमा ! से जहाणामए रण्णो चाउरंतचक्कटिस्स कल्लाणे भोयणजाए सयसहस्सनिप्फन्ने वणेणुववेए गंधेणुववेए रसेणुववेए फासेणुववेए आसायणिज्जे विसायणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिंहणिज्जे सव्विंदिअगायपल्हाय णिज्जे । भवे एयारूवे ? णो इणट्ठे समट्ठे । तेसि णं पुप्फफलाणं एत्तो इट्ठतराए चेव कंततराए चेव पियतराए चेव मण्णतराए चेव मणामतराए चेव आसाए पण्णत्ते । ३. ते णं भंते! मणुया तमाहारमाहारेत्ता कहिं वसहिं उवेंति ? गोयमा ! रुक्खगेहालया णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ! ४. तेसि णं भंते! रुक्खाणं केरिसए आगारभाव - पडोयारे पण्णत्ते ? भंते! अवसर्पिणी काल के सुषमा नाम के प्रथम अर पृथ्वी का आस्वाद कैसा होता है ? गौतम ! जैसे गुड़, खांड, शक्कर आदि पदार्थों का आस्वाद होता है। भंते! क्या उस पृथ्वी का आस्वाद ऐसा ही होता है ? नहीं । गौतम ! उस पृथ्वी का आस्वाद इनसे भी अधिक इष्ट, कांत और प्रिय होता है। भंते! पुष्पों और फलों का आस्वाद कैसा होता है ? गौतम ! जैसे चक्रवर्ती का कल्याण भोजन एक लाख गायों की दुग्धपानविधि से निष्पन्न, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श से युक्त, स्वादिष्ट, भूखवर्धक, बलवर्धक, कामोत्तेजक, पुष्टिकारक और शरीर के प्रत्येक अवयव को आह्लादित 'करने वाला होता है। भंते! क्या पुष्पों फलों का आस्वाद ऐसा ही होता है ? नहीं। गौतम ! पुष्पों और फलों का आस्वाद उससे भी अधिक इष्ट, कांत और प्रिय होता है। भंते! उस आहार को करने वाले मनुष्यों के आवास कहां होते हैं ? गौतम! वे मनुष्य वृक्ष - गृहों में रहते हैं। भंते! उन वृक्षों का आकार - प्रत्यवतार कैसा होता है ?
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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