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आत्मा का दर्शन
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खण्ड-३
अनशन आत्महत्या नहीं, किन्तु स्वेच्छापूर्वक देह का त्याग है, देह के ममत्व का विसर्जन है। देह के प्रति आकर्षण बढ़ता है तब तक व्यक्ति मौत से कतराता रहता है। वह डॉक्टर और दवाइयों के आश्रित पलता है किंतु जब मोह विलीन होता है तभी अनशन स्वीकृत किया जा सकता है अमरत्व की यह सबसे सुन्दर संजीवनी है कि देह के प्रति ममत्व का विसर्जन किया जाए। जैन दर्शन हर अवस्था में अनशन की अनुमति नहीं देता। उसका कथन है कि जब साधक को यह लगे कि शरीर शिथिल हो रहा है, उससे ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना होनी कठिन है, तब वह खान-पान के विसर्जन से देह विसर्जन की बात सोचता है। इस दिशा में वह क्रमशः गति करता है और एक दिन संपूर्ण त्याग कर समाधि मरण को प्राप्त करता है।
प्रकर्षाय,
प्रतिमाः प्रतिपद्येत, श्रावकः
३९. संयमस्य
४०. दर्शनप्रतिमा दृष्टिमाराधयंल्लोकः,
तत्र,
मनोनिग्रहहेतवे । साधनारुचिः ॥
सर्वधर्मरुचिभवत् । सर्वमाराधयेत्परम् ॥
४१. व्रतसामायिकपौषधकार्योत्सर्गा मिथुनवर्जनकम् । सच्चित्ताहारवर्जनस्वयमारम्भवर्जने चापि ॥
४२. प्रेष्यारम्भविवर्जनमुद्दिष्टभक्तवर्जनञ्चापि । श्रमणभूत एकादश प्रतिमा एता विनिर्दिष्टाः ॥ (त्रिभिर्विशेषकम् )
संयम के उत्कर्ष और मन का निग्रह करने के लिए साधना में रुचि रखनेवाला श्रावक प्रतिमाओं को स्वीकार करे।
श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएं हैं- १. दर्शन प्रतिमा- दर्शन प्रतिमा को स्वीकार करने वाला सब धर्मों-साधना के सभी प्रकारों में रुचि रखता है । दृष्टि की आराधना करने वाला सबकी आराधना कर लेता है। २. व्रत - प्रतिमा ३. सामायिक प्रतिमा ४. पौषध प्रतिमा ५ कायोत्सर्ग प्रतिमा ६ ब्रह्मचर्यं प्रतिमा । ७. सचित्ताहारवर्जन - प्रतिमा । ८. स्वयं आरंभवर्जन - प्रतिमा । ९. प्रेष्यारंभवर्जन - प्रतिमा। १०. उद्दिष्टभक्तवर्जन - प्रतिमा। ११. श्रमणभूत- प्रतिमा।
॥ व्याख्या ॥
प्रतिमा का अर्थ है अभिग्रह-अमुक प्रकार की प्रतिज्ञा, संकल्प उपासक की ग्यारह प्रतिमाएं हैं उनका विवरण इस प्रकार है :
दर्शन श्रावक :
यह पहली प्रतिमा है। इसका कालमान एक मास का है। इसमें सर्वधर्म विषयक रुचि होती है, किन्तु अनेक शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास आदि का आत्मा में प्रतिष्ठापन नहीं होता। केवल सम्यग्दर्श उपलब्ध होता है।
कृतव्रतकर्म :
यह दूसरी प्रतिमा है। इसका कालमान दो महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धि के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक अनेक शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास आदि का सम्यक् प्रतिष्ठापन करता है, किन्तु वह सामायिक और देशावकाशिक का अनुपालन नहीं करता ।
कृतसामायिक :
यह तीसरी प्रतिमा है। इसका कालमान तीन महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाध उपासक प्रातः और सायंकाल सामयिक और देशावकाशिक का पालन करता है, परंतु पर्व- दिनों में प्रतिपूर्ण पौषधोपवास नहीं करता।
पौषधोपवासनिरत :
यह चौथी प्रतिमा है। इसका कालमान चार महीनों का है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी