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________________ संबोधि ३२३ अ. १३ : साध्य-साधन-संज्ञान ___परमात्मा वही आत्मा होती है, जो राग-द्वेष और शरीर से मुक्त होती है। आत्मा और परमात्मा में केवल आवरण और अनावरण का ही अंतर है। आवृत आत्मा आत्मा है और अनावृत आत्मा परमात्मा। उनमें स्वरूप-भेद नहीं, केवल अवस्था-भेद है। १२.स्थूलदेहस्य मुक्त्याऽसौ, भवान्तरं प्रधावति। __ अन्तरालगतिं कुर्वन्, ऋजु वक्रां यथोचिताम्॥ आत्मा मृत्यु के क्षण में स्थूल शरीर से मुक्त होकर भवांतर-पुनर्जन्म के लिए प्रस्थान करती है। उस समय उत्पत्तिस्थान के अनुसार उसकी ऋजु अथवा वक्र अंतराल गति होती है। १३. यावत् सूक्ष्मं शरीरं स्यात्, तावन्मुक्तिर्न जायते। जब तक सूक्ष्म शरीर तैजस और सूक्ष्मतर शरीर कार्मण पूर्णसंयमयोगेन, तस्य मुक्तिः प्रजायते॥ विद्यमान रहता है, तब तक आत्मा मुक्त नहीं होती। आत्मा की मुक्ति पूर्ण संयम-सर्व संवर की अवस्था में होती है, तब दोनों शरीर छूट जाते हैं। ॥ व्याख्या ॥ . शरीर मुक्ति का बाधक है। मुक्तात्मा का पुनः जन्म नहीं होता। अवतार वही आत्माएं लेती हैं जो सशरीरी हैं। शरीर पांच हैं-औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण। संसारी के दो और तीन शरीर सदा रहते हैं। कुछ आत्माओं में पांच शरीरों की योग्यता भी रहती है। दो शरीर में आत्मा अधिक देर नहीं रहती। उसे तीसरा शरीर शीघ्र ही धारण करना होता है। दो शरीरों का जघन्य कालमान एक समय है, और उत्कृष्ट दो, तीन या चार समय। ये दो सूक्ष्म शरीर अंतराल गति में होते हैं। आत्मा जब एक स्थूल शरीर को छोड़कर दूसरे स्थूल शरीर में प्रवेश करती है, उस गमन को अंतराल गति कहते हैं। पांच शरीरों का स्वरूप-वर्णनऔदारिक शरीर जो शरीर स्थूल पुद्गलों से निष्पन्न होता है वह औदारिक शरीर है। वैक्रिय आदि चारों शरीर सूक्ष्म, सूक्ष्मतर पुद्गलों से बने हुए होते हैं। औदारिक शरीर आत्मा से अलग हो जाने के बाद भी टिक सकता है। परन्तु वैक्रिय आदि शरीर आत्मा के अलग होते ही बिखर जाते हैं। औदारिक शरीर का छेदन-भेदन किया जा सकता है, परन्तु अन्य शरीर में छेदन-भेदन संभव नहीं। मोक्ष की प्राप्ति भी सिर्फ औदारिक शरीर से ही हो सकती है। औदारिक शरीर में हाड़, मांस, - रक्त आदि होते हैं और इनका स्वभाव भी गलना, सड़ना, विनाश होना है। वैक्रिय शरीर जो शरीर छुटपन, बड़पन, सूक्ष्मता, स्थूलता, एकरूप, अनेक रूप आदि विविध क्रियाएं करता है, वह वैक्रिय शरीर है। जिस शरीर में हाड़, मांस, रक्त न हो तथा जो मरने के बाद कपूर की तरह उड़ जाए, उसको वैक्रिय शरीर कहते है। आहारक शरीर चतुर्दश-पूर्वधर मुनि आवश्यक कार्य उत्पन्न होने पर जो विशिष्ट पुद्गलों का शरीर बनाते हैं, वह आहारक शरीर है। . तैजस शरीर जो शरीर आहार आदि के पचाने में समर्थ है और जो तेजोमय है वह तैजस शरीर है। इसे वैद्युतिक शरीर भी कहा जाता है। कार्मण शरीर ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों के पुद्गल समूह से जो शरीर बनता है, वह कार्मण शरीर है। तैजस और कार्मण शरीर-ये दोनों सक्ष्म शरीर हैं। आत्मा के साथ इनका अनादि-संबंध है। औदारिक शरीर जन्म
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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