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आत्मा का दर्शन ३०८
खण्ड-३ ७३. भावनाभिर्विमूढाभिः, भावितं मूढतां व्रजेत्। मोहयुक्त भावनाओं से भावित चित्त मूढ बनता है और मोह
चित्तं ताभिरमूढाभिः, भावितं मुक्तिमर्हति॥ रहित भावनाओं से भावित होकर वह मुक्ति को प्राप्त होता है।
७४.आत्मोपलब्ध्यै जीवानां, भावनालम्बनं महत्।
तेन नित्यं प्रकुर्वीत, भावनाभावितं मनः॥
आत्म-स्वरूप की उपलब्धि के लिए भावना महान् आलंबन है, इसलिए मन को सदा भावनाओं से भावित करना चाहिए।
७५. भावनायोगशुद्धात्मा, जले नौरिव विद्यते।
नौकेव तीरसंपन्नः, सर्वदुःखाद् विमुच्यते॥
भावना योग-अनित्य आदि भावनाओं से जिसकी आत्मा शुद्ध होती है, वह जल में नाव की भांति होती है। जैसे नाव किनारे पर पहुंचती है, वैसे ही वह दुःखों का पार पा जाता है, मुक्त हो जाता है।
७६.भवेदास्रविणी नौका, न सा पारस्य गामिनी।
या निरास्रविणी नौका, सा तु पारस्य गामिनी॥
जो नाव आसविणी है-छेद वाली है, वह समुद्र के पार नहीं पहुंचती और जो निरासविणी है-छेद रहित है, वह समुद्र के उस पार चली जाती है।
॥ व्याख्या ॥ भावना-भावना का एक अर्थ होता है-वासना या संस्कार। मनुष्य का जीवन अनंत जन्मों की वासना का परिणाम है। व्यक्ति जैसी भावना रखता है वह वैसा ही बन जाता है। मनुष्य जो कुछ कर रहा है वह सब भावना का पुनरावर्तन है। साधना का अर्थ है-एक नया संकल्प या सत्य की दिशा में अभिनव भावना का अभ्यास, जिससे आत्म-विमुख भावना के मंदिर को तोड़कर आत्माभिमुखी भावना द्वारा नये भवन का निर्माण करना। किन्तु यह एक दूसरी अति न हो जाए, जिसमें व्यक्ति अन्य भावना द्वारा पहले की तरह संमोहित हो जाए। इसलिए भावना का दूसरा अर्थ है-जिस भावना से अपने को संस्कारी बना रहे हैं, ध्यान द्वारा उसे प्रत्यक्ष अनुभव करना। यदि केवल संकल्प को दोहराते चले जाएं तो फिर वह । सम्मोहन हो जाएगा। एक टूटेगी, दूसरी निर्मित होगी। किन्तु अनुभूति नहीं होगी।
अमेरिका के राष्ट्रपति लिंकन की जन्म-शताब्दी मनाई जाने वाली थी। लिंकन से मिलते-जुलते व्यक्ति को उसकी भूमिका निभाने के लिए चुना गया। उसने वर्ष भर यात्रा की। लिंकन का पार्ट अदा किया। वह संस्कार इतना सघन हो गया कि वह अपने आपको लिंकन समझने लगा। वर्ष पूरा हो गया, किन्तु उसका सपना नहीं टूटा। लोगों ने बहुत समझाया कि तुम लिंकन नहीं हो। लेकिन वह किसी तरह इसको स्वीकार करने के लिए राजी नहीं हुआ। कुछ लोगों ने कहा, जैसे लिंकन को गोली मारी वैसे ही इसको भी गोली मार दो। अंततोगत्वा एक मशीन का निर्माण किया गया, जो असल को प्रगट कर सके। अनेक परीक्षण सफल हुए। किन्तु वह मशीन पर खड़ा हुआ। उसने सोचा, सब कहते हैं-तू लिंकन नहीं है, कह दूं और उससे पीछा छुड़ा लूं। वह बोला-मैं लिंकन नहीं हूं, किन्तु मशीन ने बताया कि तू लिंकन है, वह फेल हो गई। भावना का इतना गहरा असर हुआ कि लिंकन न होते हुए भी लिंकनाभास अवचेतन मन में पेठ गया। इसलिए यह अपेक्षित है कि साधक भावना के साथ-साथ सचाई के दर्शन से पराङ्मुख न हो। वह ध्यान के अभ्यास के साथ-साथ भावना का अनुशीलन करता रहे।
महावीर ने भावना को नौका कहा है। जैसे नाव से समुद्री यात्रा सानन्द सम्पन्न होती है, वैसे ही भावना रूपी नौका से चित्त को साध्य के अनुरूप सुवासित कर भव-सागर को पार किया जा सकता है। सूफी संतों ने एक सुझाव साधकों को दिया है कि जो भी दिखाई पड़े, उसे परमात्मा मानकर चलना। अनुभव हो तब भी और कल्पना करनी पड़े तब भी। क्योंकि वह कल्पना एक दिन सिद्ध होगी। जिस दिन सिद्ध होगी, उस दिन किसी से क्षमा नहीं मांगनी पड़ेगी। इसमें भावना और अनुभूति-दोनों का स्पष्ट दर्शन है।