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________________ उद्भव और विकास अ. २: कालचक्र उत्सर्पिणी काल प्रथम अर १६.तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले इक्कीस हजार वर्ष की स्थितिवाले दुःषम-दुःषमा वीइक्कंते आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सावण- नामक छठे अर के बीतने पर आगामी उत्सर्पिणी काल बहुलपडिवए बालवकरणंसि अभीइणक्खत्ते का प्रारंभ होगा। श्रावण मास की कृष्ण प्रतिपदा, बालव चोइसपढमसमये अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अणंतेहिं करण, अभिजित् नक्षत्र तथा काल गणना के चवदह गंधपज्जवेहिं अणंतेहिं रसपज्जवेहिं अणंतेहिं विभागों के प्रथम समय में वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, संहनन, फासपज्जवेहिं अणंतेहिं संघयणपज्जवेहि अणंतेहिं संस्थान, ऊंचाई, आयु, गुरुलघुपर्यव, अगुरुलघुपर्यव, संठाणपज्जवेहि अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अणंतेहिं उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार और पराक्रम में अनंत आउपज्जवेहिं अणंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं गुण वृद्धि होने लगेगी। आयुष्मन् ! उस वर्द्धमान स्थिति में अणंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अणंतेहिं उट्ठाण- उत्सर्पिणी काल का दुःषम-दुःषमा नामक प्रथम अर प्रारंभ कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं होगा। अणंतगुणपरिवड्ढीए परिवड्ढेमाणे-परिवड्ढेमाणे, एत्थ णं दूसमदूसमा णामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो! द्वितीय अर १७.तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले वीइक्कंते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं....अणंतगुणपरिवड्ढीए परिवड्ढेमाणे-परिवड्ढेमाणे, एत्थ णं दूसमा णामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो! इक्कीस हजार वर्ष की स्थितिवाले दुःषम-दुःषमा नामक प्रथम अर के बीतने पर वर्ण आदि में अनंतगुण वृद्धि होने लगेगी। आयुष्मन्! उस वर्द्धमान स्थिति में उत्सर्पिणी काल का दुःषमा नामक दूसरा अर प्रारंभ होगा। तृतीय अर १८.तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले वीइक्कंते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं....अणंतगुणपरिवड्ढीए परिवड्ढेमाणे-परिवड्ढेमाणे, एत्थ णं दूसमसुसमा णामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो! इक्कीस हजार वर्ष की स्थितिवाले दुःषमा नामक दूसरे अर के बीतने पर वर्ण आदि में अनंतगुण वृद्धि होने लगेगी। आयुष्मन् ! उस वर्द्धमान स्थिति में उत्सर्पिणी काल का दुःषम-सुषमा नामक तीसरा अर प्रारंभ होगा। चतुर्थ अर १९.तीसे णं समाए सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणियाए काले वीइक्कंते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं....अणंतगुण- परिवड्ढीए परिवड्ढेमाणे-परिवड्ढेमाणे, एत्थ णं सुसमदूसमा णामं समा काले पडिवन्जिस्सइ समणाउसो! बयालीस हजार वर्ष कम एक कोड़ाकोड़ी सागरोपम की स्थितिवाले दुःषम-सुषमा नामक तृतीय अर के बीतने पर वर्ण आदि में अनंतगुण वृद्धि होने लगेगी। आयुष्मन् ! उस वर्द्धमान स्थिति में उत्सर्पिणी काल का सुषम-दुःषमा नामक चतुर्थ अर प्रारंभ होगा।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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