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आत्मा का दर्शन
खण्ड-१
षष्ठ अर १४. तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले इक्कीस हजार वर्ष की स्थिति वाले दुःषमा नामक
वीइक्कते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं.....अणंतगुण- पंचम अर के बीतने पर वर्ण आदि में अनन्तगुण हानि हो परिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे एत्थ णं जाएगी। आयुष्मन् ! उस हीयमान स्थिति में अवसर्पिणी दूसमदूसमा णामं समा काले पडिवज्जिस्सइ काल का दुःषम-दुःषमा नामक छट्ठा अर प्रारंभ होगा। समणाउसो!
विश्वविनाश का एक चित्र १५.तीसे णं भंते! समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स भंते! जब अवसर्पिणी काल का छट्ठा अर दुःषमवासस्स केरिसए आगारभाव-पडोयारे भविस्सइ? दुःषमा पराकाष्ठा पर होगा, तब भरतक्षेत्र का स्वरूप व
पर्यावरण कैसा होगा? गोयमा! काले भविस्सई हाहाभूए भंभाभूए गौतम! वह काल हाहाकारमय होगा। उसमें सांयकोलाहलभूए समाणुभावेण य णं खरफरुस- सांय की आवाजें होंगी। खर, परुष, धूलिमय, दुस्सह, धूलिमइला दुविसहा वाउला भयंकरा य वाया चक्राकार हवाएं चलेंगी। भयंकर प्रलयंकारी हवाएं चलेंगी। संवट्टगा य वाहिति। इह अभिक्खणं धूमाहिति य दिशाएं धूमिल, रजकणों से व्याप्त तथा धूलभरी आंधियों दिसा समंता रउस्सला रेणुकलुस-तमपडल- से अंधकारमय होंगी। चांद अधिक ठंडा हो जाएगा। सूरज णिरालोया। समयलुक्खयाए य णं अहियं चंदा और अधिक तपेगा। सीयं मोच्छिहिति, अहियं सूरिया तविस्संति।
अदुत्तरं च णं गोयमा! अभिक्खणं अरसमेहा गौतम! उस समय मेघ बार-बार बरसेंगे। उन मेघों विरसमेहा खारमेहा खत्तमहा अग्गिमेहा विज्जुमेहा का जल अरस और विरस होगा। वे मेघ क्षारमय विसमेहा असणिमेहा अजवणिज्जोदगा वाहिरोग- (तेजाबी), अधिक विद्युत वाले, विषमय और उल्कामय वेदणोदीरणपरिणामसलिला - अमणुण्णपाणियगा होंगे। उनका जल यापनीय (जीवन-निर्वाह के लिए चंडानिलपहत-तिक्खधारा-णिवातपउरं वासं उपयोगी) नहीं होगा। वे मेघ व्याधि, रोग और वेदना को वासिहिति। जेणं भरहे वासे गामागरणगर-खेड- उदय में लाने वाले होंगे, अमनोज्ञ जलवाले होंगे। उनकी कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणासमगयं जणवयं, धारा प्रचंड वायु से प्रहत तीव्र वेगवाली होंगी। उससे चउप्पयगवेलए, खहयरे पक्खिसंघे गामा- भरतक्षेत्र के ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, मडंब, रण्णप्पयारणिरए तसे य पाणे बहुप्पयारे रुक्ख- द्रोणमुख, आश्रम और जनपद विनष्ट हो जाएंगे। गुच्छ-गुम्म-लय-वल्लि-पवालंकुरमादीए तण- चतुष्पद-गाय, भैंस, भेड़ आदि पशु, नभचर-पक्षी समूह वणस्सइकाइए ओसहीओ य विद्धंसेहिंति पव्वय एवं ग्राम व जंगल में घूमने वाले विविध त्रस प्राणी विनष्ट गिरि-डोंगरुत्थलभट्ठिमादीए य वेयड्ढगिरिवज्जे । हो जाएंगे। वृक्ष, गृच्छ, गुल्म, लता, बेल, कोपल, अंकुर विरावेहिंति, सलिलबिलविसम-गड्डणिण्णुण्ण- आदि सब प्रकार की तृण-वनस्पतियां एवं फसलें लुप्त हो याणि य गंगासिंधुवज्जाइं समीकरोहिंति।'
जाएंगी। वैताढ्य (हिमालय) पर्वत को छोड़ शेष सभी पर्वत, गिरि, डूंगर, स्थल, पठार आदि विदीर्ण हो जाएंगे। गंगा और सिंधु नदी को छोड़ कर शेष सभी झरने,
तालाब, गड्ढे आदि सूख जाएंगे। समतल हो जाएंगे। १. प्रस्तुत वर्णन में विश्वविनाश का जो चित्र खींचा गया है, उसकी संपुष्टि आज के वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत अणुयुद्ध से होनेवाले पर्यावरणीय परिवर्तन से की जा सकती है। इटली के वैज्ञानिक प्रो. टॉरी की भविष्यवाणी इस संदर्भ में तुलनीय है।
इसका विस्तृत वर्णन भगवती ७/११८-१२३ के सूत्र में देखें।