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उद्भव और विकास
द्व
९. तीसे णं समाए चउहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अणंतेहिं गंधपज्जवेहिं अणतेहिं रसपज्जवेहिं अणंतेहिं फासपज्जवेहिं अणंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अणंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अणंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयल हुयपज्जवेहिं अणंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अणंतेहिं उट्ठाणकम्म-बल-वीरिय- पुरिसक्कार- परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणी परिहायमाणे- परिहायमाणे एत्थ णं सुसमा णामं समा काले पडिवज्जिंसु समणाउसो !
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तृतीय अर
१०. तीसे णं समाए तिहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं..... अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे- परिहायमाणे एत्थ णं सुसमदुस्समा णामं समा काले पडिवज्जिसु समणाउसो !
चतुर्थ अर
११. तीसे णं समाए दोहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं..... अणंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे- परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमसुसमा णामं समा काले पडिवज्जिसु समणाउसो !
पंचम अर
१२. तीसे णं समाए भरहे वासे एक्काए सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणियाए का वीsrid अणतेहिं aणपज्जवे हिं .... अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे- परिहायमाणे, तत्थ णं दूसमा णामं समा काले पडिवज्जिस्सह समणाउसो !
१३. तीसे णं समाए पच्छिमे तिभागे गणधम्मे पासंडधम्मे रायधम्मे जायते वोच्छिज्जिस्सइ ।
धम्मचरणे
य
अ. २ : कालचक्र
चार कोड़ाकोड़ी सागरोपम की स्थिति वाले प्रथम अर के बीतने पर वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, संहनन, संस्थान, ऊंचाई, आयु, गुरुलघुपर्यव, अगुरुलघुपर्यव, उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार और पराक्रम में क्रमशः अनन्तगुण हानि हो गई। आयुष्मन् ! उस हीयमान स्थिति में अवसर्पिणी काल का सुषमा नामक दूसरा अर प्रारंभ हुआ ।
तीन कोड़ाकोड़ी सागरोपम की स्थितिवाले दूसरे अर के बीतने पर वर्ण आदि में क्रमशः अनन्तगुण हानि हो गई। आयुष्मन् ! उस हीयमान स्थिति में अवसर्पिणी काल का सुषम-दुःषमा नामक तीसरा अर प्रारंभ हुआ।
दो कोड़ाकोड़ी सागरोपम की स्थितिवाले तीसरे अर के बीतने पर वर्ण आदि में क्रमशः अनन्तगुण हानि हो गई। आयुष्मन् ! उस हीयमान स्थिति में अवसर्पिणी काल का दुःषम-सुषमा नामक चतुर्थ अर प्रारंभ हुआ।
बयालीस हजार वर्ष कम एक कोड़ाकोड़ी सागरोपम की स्थिति वाले चतुर्थ अर के बीतने पर वर्ण आदि में क्रमशः अनंतगुण हानि हो जाएगी। आयुष्मन् ! उस हीयमान स्थिति में अवसर्पिणी काल का दुःषमा नामक पांचवां अर प्रारंभ होगा।
दुःषमा नाम के पंचम अर का एक-तिहाई भाग जब शेष रहेगा, तब गणधर्म, पाषंडधर्म, राजधर्म, अग्नि और धर्माचरण का विच्छेद हो जाएगा।