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________________ आत्मा का दर्शन एगा सागरोवमकोडाकोडी बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिया कालो दूसमसुसमा । एक्कवीसं वाससहस्साइं कालो दूसमा । एक्कवीसं वाससहस्साइं कालो दूसमदूसमा । ५. उस्सप्पिणीए एक्कवीसं वाससहस्साइं कालो दूसमदूसमा । एक्कवीसं वाससहस्साइं कालो दूसमा । एगा सागरोवमकोडाकोडी बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिया कालो दूसमसुसमा । दो सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमदूसमा । उत्सर्पिणी का कालमान तिण्णि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमा । तिण्णि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसम - सुसमा । ६. दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी, दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणी, वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी उस्सप्पिणी य । प्रथम अर ७. जंबूहीवे णं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसम - सुसमा समाए उत्तिमट्ठपत्ताए, भरहस्स वासस्स रिस आगारभाव - पडोयारे होत्था ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था । तत्थ णं बहवे भारया मणुस्सा मणुस्सीओ य आसयंति सयंति चिट्ठेति निसीयंति तुयति हसंति रमंति ललंति। तीसे णं समाए भारहे वासे तत्थ-तत्थ देसे - देसे तहिं तहिं बहवे उद्दाला कोहाला जाव कुस - विकुस - विसुद्धरुक्ख मूला...... । ८. छव्विहा मणुस्सा अणुसज्जित्था, तं जहा१. पम्हगंधा २. मियगंधा ४. तेतली ५. सहा १४ खण्ड - १ ४. दुःषम- सुषमा का कालमान- ४२ हजार वर्ष कम १ कोड़ाकोड़ी सागरोपम । ५. दुःषमा का कालमान- २१ हजार वर्ष । ६. दुःषम - दुःषमा का कालमान-२१ हजार वर्ष । ३. अममा ६. सणिचारी १. दुःषम - दुःषमा का कालमान- २१ हजार वर्ष । २. दुःषमा का कालमान- २१ हजार वर्ष । ३. दुःषम- सुषमा का कालमान-४२ हजार वर्ष कम १ कोड़ाकोड़ी सागरोपम। ४. सुषम दुःषमा का कालमान-२ कोड़ाकोड़ी सागरोपम । अवसर्पिणी काल ५. सुषमा का कालमान- ३ कोड़ाकोड़ी सागरोपम । ६. सुषम- सुषमा का कालमान-४ कोड़ाकोड़ी सागरोपम। अवसर्पिणी का कालमान दस कोड़ाकोड़ी सागरोपमः । उत्सर्पिणी का कालमान दस कोड़ाकोड़ी सागरोपम। इस प्रकार कालचक्र' का कालमान है बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम भंते! जंबूद्वीप नामक द्वीप में अवसर्पिणी काल का सुषम-सुषमा नामक प्रथम अर जब अपने उत्कर्ष में था, उस समय भरतक्षेत्र का आकारभावप्रत्यावतार - स्वरूप और पर्यावरण कैसा था ? गौतम ! उस समय भरतक्षेत्र का भूमिभाग मृदंग की तरह प्रायः समतल और रमणीय था। वहां के स्त्री-पुरुष बैठते थे, सोते थे, खड़े रहते थे। हास्य और क्रीड़ा करते थे। उस समय भरतक्षेत्र में कहीं-कहीं अनेक उद्दाल, कोद्दाल आदि वृक्ष थे। उनके मूल में घास-फूस नहीं थे। दूब, तृण आदि वहां छह प्रकार के मनुष्य निवास करते थे१. पक्ष्मगंध २. मृगगंध ४. तेतली ५. सह ३. अमम ६. सणिचारी । "
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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